लखनऊ। महाराष्ट्र की तर्ज पर यूपी में योगी सरकार प्रशासनिक व्यवस्था में एक बड़ा प्रयोग करने जा रही है। राजधानी लखनऊ और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हुए नोएडा इलाके में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू हो रहा है। नोएडा में पुलिस कमिश्नर की जिम्मेदारी नवीन अरोड़ा को दी जा सकती है, जबकि लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी बनने के बाद प्रवीण कुमार को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है।
इन तमाम कवायदों के पीछे सरकार का तर्क यह है कि जिले की लॉ एंड ऑर्डर समेत तमाम प्रशासनिक अधिकार अब तैनात किए गए पुलिस कमिश्नर के पास रहेंगे।
पीसीएस अफसरों को होगी बड़ी असुविधा
ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत पीसीएस अफसरों के सामने आने वाली है। सामान्य तौर से पीसीएस अफसरों को प्रशासनिक अमले में रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, लेकिन नोएडा और लखनऊ में अब एडीएम सिटी और एसीएम के सारे अधिकार पुलिस के पास होंगे। जबकि 12 से ज्यादा सीनियर पीसीएस अधिकारी अचानक दोनों जिलों में शून्य अवस्था में आ जाएंगे। पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद सभी एसीएम रिलीव कर दिए जाएंगे। वहीं दोनों जिलों के सिटी के पास अब कोई काम नहीं बचेगा। लॉ एंड ऑर्डर के मामले में पुलिस कमिश्नर ही अब सर्वे सर्वा होगा। पुलिस को अब किसी भी प्रशासनिक अधिकारी से कोई आदेश लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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जानें क्या है पुलिस कमिश्नरी सिस्टम?
भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के तहत जिला अधिकारी (डीएम) के पास पुलिस पर नियत्रंण करने के अधिकार होते हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को कानून और व्यवस्था को विनियमित करने के लिए कुछ शक्तियां प्रदान करता है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। वह आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या कमिश्नर या फिर शासन के आदेश के तहत ही कार्य करते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो जाने से जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के ये अधिकार पुलिस अधिकारियों को मिल जाते हैं। यानी जिले का सर्वे सर्वा कहा जाने वाला आईएएस अब कुछ नहीं होगा। आम तौर से आईपीसी और सीआरपीसी के सभी अधिकार जिले का डीएम वहां तैनात पीसीएस अधिकारियों को दे देता है।
इस कारण है भय का माहौल
प्रयोग के तौर पर ही सही उत्तर प्रदेश के दो जिलों में लागू होने वाले पुलिस कमिश्नर सिस्टम से प्रशासनिक अधिकारियों में भी भय का माहौल है। हालांकि प्रयोग के तौर पर इन तमाम सवालों को बेहतरी के तौर पर सरकार पेश कर रही है, लेकिन सरकार को यह भी सोचना होगा कि अगर मुख्यधारा में बैठे हुए आईएएस और पीसीएस अधिकारी सहयोग करना बंद कर देंगे, तो उत्तर प्रदेश में लागू की जा रही यह व्यवस्था कहीं बैकफायर न कर जाए।