नई दिल्ली। एक पूर्णत: लोकतांत्रिक देश में लगातार लंबे समय से अपने पद पर बने रहने वाले नेताओं में एंजेला मर्केल का नाम सबसे ऊपर आता है। पिछले साल फोर्ब्स ने उन्हें दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में पहले नंबर पर रखा था। 2015 में टाइम्स मैग्जीन ने उन्हें ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ के खिताब से नवाजा था।
2015 में टाइम्स मैग्जीन ने उन्हें ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ के खिताब से नवाजा
वैसे तमाम संस्थानों की ओर से सबसे ताकतवर महिला के ये खिताब अब मर्केल के लिए साधारण बात हो चुकी है। दुनिया में उनके रुतबे का अंदाजा इससे ही लगा सकते हैं कि जब उनके मंत्रिमंडल में रह चुकी उर्सुला वेन डेर लेयेन को यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद दिया जाता है तो भी जानकार यही कहते हैं कि उन्होंने राजनीति करना मर्केल से ही सीखा है।
2013 के जर्मन फेडरल इलेक्शन में उनके चुनावी नारों में से एक था- ‘यू नो मी
एंजेला मर्केल की ताकत का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि वे 2005 से लगातार जर्मनी की चांसलर के पद पर अपने दम पर काबिज हैं और 2013 के जर्मन फेडरल इलेक्शन में उनके चुनावी नारों में से एक था- ‘यू नो मी।’ जर्मन में इस नारे का आशय था कि ‘आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं। आपको पता है मैं आपके साथ कहां मेल खाती हूं?’ चुनावी राजनीति में उनके राजनीतिक दल CDU का पूरा कैंपेन उनकी शख्सियत के ही इर्द-गिर्द घूमता रहता था। अभी भी उन्हें जनता का पूरा विश्वास हासिल है। हालांकि कई लोग उनकी वृहद गठबंधन सरकार के कामों के आलोचक रहे हैं, लेकिन अब भी देश की ज्यादातर जनता यही चाहती है कि मर्केल कम से कम 2021 तक अपने कार्यालय में बनी रहें। जर्मन जनता पर एंजेला मर्केल का जादू ऐसे ही नहीं चलता है। इसके पीछे कई वजहें हैं।
एंजेला मर्केल की व्यक्तित्व में हैं कुछ खास बातें
एंजेला मर्केल चाहती हैं कि उनके आस-पास के लोग हमेशा उनके साथ ईमानदार रहें और जो भी उनके इस नियम को तोड़ता है, उसकी छुट्टी हो जाती है। ऐसा ही एक वाकया 1994 का है, जब वे जर्मन सरकार में पर्यावरण मंत्री बनी थीं। उन्होंने मंत्रालय में आते ही मंत्रालय के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी को हटा दिया था क्योंकि उसने मीडिया के सामने कह दिया था कि मर्केल को ‘चीजों को सही से चलाने के लिए उसकी मदद चाहिए होगी’।
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कहा जाता है कि एंजेला मर्केल बहुत ध्यान से लोगों को सुनती हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जर्मन चांसलर हेल्मुट कोल के मंत्रिमंडल में शामिल होकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। कहा जाता है उन्होंने हेल्मुट कोल से ही राजनीति करना सीखा।
मर्केल को सही मौके को पहचानना आता है
पूर्वी जर्मनी से आने वाली मर्केल तेजी से कोल कैबिनेट में महत्वपूर्ण पद पाने वाली बनीं, लेकिन जब कोल 1999 में एक स्कैंडल में फंसे और उनपर चुनाव प्रचारके दौरान आर्थिक गड़बड़ियों के आरोप लगे तो मर्केल ने कोल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया और पार्टी के प्रमुख के पद पर काबिज हो गईं।
इसके लिए मर्केल ने एक प्रमुख जर्मन अखबार में हेल्मुट कोल के नाम एक खुला खत लिखकर प्रकाशित कराया, जिसमें उन्होंने हेल्मुट कोल के लिए ‘बूढ़े घोड़े’ को अलविदा लिखा था। हालांकि यह एक खतरनाक प्रयोग था लेकिन यह सफल रहा और इसने मर्केल को पार्टी की अध्यक्षता दिलाने में भी मदद की।
एंजेला मर्केल जनता की ज्यादा सुनती हैं पार्टी की कम
मर्केल की एक और खासियत यह है कि चाहे उनकी पार्टी ही उनके खिलाफ हो, लेकिन मर्केल नए दौर को अपनाने से हिचकिचाती नहीं हैं। जब वे चौथी बार जर्मनी की चांसलर बनीं तो वे जान चुकी थीं कि जनता की मांगें उनकी पार्टी के कार्यक्रमों से आगे निकल चुकी हैं। इसलिए उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यक्रमों को जबरदस्त तरीके से आधुनिक बनाया। बता दें कि यूरोप का इंजन कहे जाने वाले जर्मनी ने पूरी तरह से परमाणु और कोयले से बनी ऊर्जा के प्रयोग को खत्म करने का कदम उठाया है। जब दुनिया के बड़े-बड़े राजनेता जलवायु परिवर्तन को स्वीकारने से भी बच रहे हैं, ऐसे में बिना यह सोचे कि नए ऊर्जा के स्रोत जर्मनी की जरूरत पूरी भी कर सकेंगे या नहीं मर्केल का ऐसा निर्णय करना बताता है कि इन कदमों में उनकी जनता ही नहीं दुनिया के लिए भी एक बड़ा संदेश छिपा हुआ है।
एंजेला मर्केल के दौर में ही जर्मनी में समलैंगिक विवाहों की अनुमति दी
इसके अलावा मर्केल के दौर में ही जर्मनी में समलैंगिक विवाहों की अनुमति दी गई। यह भी उनकी पार्टी के कार्यक्रमों से आगे की बात थी, जबकि उनकी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी इसे लेकर उत्साहित नहीं थी। सबसे ज्यादा वाहवाही वाला कदम मर्केल ने तब उठाया जब उन्होंने जर्मनी में 10 लाख से ज्यादा रिफ्यूजियों को शरण देने का फैसला किया। इन कदमों के दौरान मर्केल ने प्रभावशाली ढंग से अपनी पारंपरिक रूप से रुढ़िवादी सीडीयू पार्टी की नीतियों को केंद्र की ओर खींचा। यह सारे बदलाव पार्टी के रुख को देखते हुए भी जनता की मांग को ध्यान में रखकर किए गए।
शांत मर्केल अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने देतीं
वह अक्सर शांत रहती हैं और अपना काम करती रहती हैं। रूस के आक्रामक रवैये का मर्केल ने बहुत ही मजबूती से जवाब दिया था। 2007 में एक वन-टू-वन मीटिंग के दौरान व्लादिमीर पुतिन अपने लैब्राडोर कुत्ते कोनी को मीटिंग में लेकर आ गए थे। ऐसा उन्होंने मर्केल को डराने के लिए किया था। दरअसल यह एक जाना-माना तथ्य है कि मर्केल कुत्तों से डरती हैं। उस समय एंजेला मर्केल ने अपने डर को बिल्कुल भी जाहिर नहीं होने दिया और बिना डरे अपनी बातें रखीं। यह एक कूटनीतिक सफलता थी। ऐसा वे हमेशा करती हैं, वे घबराहट के क्षणों में अपने भाव जाहिर नहीं होने देतीं हैं।
इसके अलावा जर्मन लोग एंजेला मर्केल पर बहुत विश्वास रखते हैं। ऐसा उनके बेहद साधारण जीवन के चलते है। जर्मनी के लोग मानते हैं कि मर्केल भ्रष्टाचार कर ही नहीं सकती हैं।