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विजय दिवस : भारत के इतिहास में क्यूं महत्वपूर्ण है 16 दिसंबर?

विजय दिवस

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नई दिल्ली। 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष का आरंभ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के चलते तीन दिसंबर को हुआ था। इसकी वजह थी कि पाकिस्तान ने 1971 में भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमला कर दिया था। इसके बाद भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन के लिए तैयार हो गई।

जानें युद्ध की कैसे तैयारी हुई थी पृष्ठभूमि?

पाकिस्तान में 1970 के दौरान आम चुनाव हुए थे, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग ने बड़ी संख्या में सीटें जीती। इसके बाद उसने सरकार बनाने का दावा किया, लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) इस बात से सहमत नहीं थे। इसलिए उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था। उस समय हालात इतने खराब हो गए थे की सेना का प्रयोग करना पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान के अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। यहीं से पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच दिक्कतें शुरू हो गई थीं। धीरे-धीरे इतना विवाद बढ़ा कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया था। ये लोग इतने सेना के अत्याचार से पीड़ित हो गए थे कि मजबूरन उनको पलायन करना पड़ा।

बता दें कि उस समय भारत में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत में आ गए थे और उन्हें भारत में सुविधाएं दी जा रही थी, क्योंकि वे भारत के पड़ोसी देश से आए थे। इन सबको देखते हुए पाकिस्तान ने भारत पर हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें की, ताकि युद्ध न हो और कोई हल निकल जाए। शरणार्थी सही सलामत घर को लौट जाएं परन्तु ऐसा हो न सका।

कैसे भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मदद और क्यूं?

बता दें कि ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंच गए थे। ऐसा कहा जाता है कि करीब 10 लाख लोग भारत में शरणार्थी बनकर आ गए थे। ये स्थिति देख कर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश और दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी।

तत्कालीन भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ की मौजूदगी में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के साथ बैठक हुई। इस बैठक में इंदिरा गांधी ने साफ कर दिया कि अगर अमेरिका पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होगा।

भारत के कई राज्यों में शांति भी भंग हो रही थी। इंदिरा गांधी ने पूर्वी पकिस्तान में जो हो रहा था। उसको पाकिस्तान का अपना अंदरूनी मामला नहीं कहा, क्योंकि इन सबके कारण भारत में शांति भंग हो रही थी। अमेरिका का पाकिस्तान की तरफ समर्थन को देखते हुए इंदिरा गांधी ने 9 अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ ऐसा समझौता किया, जिसके तहत दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया।

ऐसे हुआ था मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म, आइये जानें कैसे?

पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे। पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स, ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स के बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ बगावत करके खुद को आजाद घोषित कर दिया था। भारत ने भी मदद की और वहां के लोगों को फौजी ट्रेनिंग दी, जिससे वहां मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म हुआ। बता दें कि पाकिस्तान के विमानों ने नवंबर की आखिरी हफ्ते में भारतीय हवाई सीमा में दाखिल होना शुरू कर दिया था। इस पर भारत एन पाकिस्तान को चेतावनी दी परन्तु पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया खान ने 10 दिन के अंदर युद्ध की दमकी दे दी?

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भारत के कुछ शहरों में 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने बमबारी शुरू कर दी। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसी वक्त आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया और कहा कि कुछ ही घंटों पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे अमृतसर, पठानकोट, फरीदकोट श्रीनगर, हलवारा, अम्बाला, आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा और सरवाला के हवाई अड्डों पर बमबारी की है। इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया है। युद्ध के तहत इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ढाका की तरफ कूच करने का हुक्म दे दिया और भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये।

4 दिसंबर, 1971 को ऑपरेशन ट्राईडेंट भारत ने शुरू किया। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की और से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर दी। दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का भी मुकाबला किया। भारतीय नौसेना ने 5 दिसंबर, 1971 को कराची बंदरगाह पर बमबारी कर पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय को तबाह कर दिया था। इसी समय इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में बनाने का एलान कर दिया था यानी अब बांग्लादेश एक नया राष्ट्र होगा। अब वो पकिस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा।

क्या आप जानते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थी। ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पे हमला किया, उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी मीटिंग करने के लिए इकट्टा हुए थे। इस हमले से पकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणामस्वरूप 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के तकरीबन 2:30 बजे सरेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय लगभग 93,000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था। इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया।

यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसीलिए देशभर में भारत की पकिस्तान पर जीत के उपलक्ष में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे।

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