■ पर्यावरण: राज्य में 53,483 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र है जो 71.05 प्रतिशत है। 6 नेशनल पार्क, 7 वन्यजीव विहार, 4 कंसर्वेशन रिजर्व हैं, एक बायोस्फियर रिजर्व तथा 1 शिवालिक हाथी रिज़र्व है। एक हेरिटेज साइट और एक रामसर साइट भी है। फिर भी हम अपने वनों को सुरक्षित रखने में सफल नहीं हुए है। आग से प्रतिवर्ष वन सम्पदा नष्ट होती है पर हम 22 वर्षों में कोई ठोस नीति नहीं बना पाये हैं।
अभी हाल की भारत की स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार बागेश्वर में 34, हरिद्वार में 27, नैनीताल में 66, रुद्रप्रयाग में 11, ऊधमसिंह नगर में 337 और उत्तरकाशी में 35 वर्ग किमी क्षेत्रफल में वन आवरण की कमी हुई है, जो चिन्ताजनक है।
चारधाम यात्रा ऑल वेदर रोड के निर्माण में लाखों हरे पेड़ काटे गये परन्तु इसके विरोध में न जनता और न कोई संस्था सामने आई। इस प्रकार के ‘मौन’ हमारी प्रकृति के प्रति एक अपराध के रूप में बड़े यक्ष प्रश्नों के रूप में खड़े होते हैं।
■ राज्य पर बढ़ता कर्ज: आरबीआई की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड पर 75 हजार 351 करोड़ का कर्ज था। जबकि राज्य की आबादी लगभगएक करोड़ 15 लाख है।
कैग रिपोर्ट ने हाल में यह जानकारी दी है कि राज्य सरकार आय के नए संसाधन नहीं जुटा पा रही है।
■ रोजगार: राज्य गठन के समय साढ़े तीन लाख पंजीकृत बेरोजगार थे। 21 साल में इनकी संख्या आठ से 10 लाख के बीच पहुंच चुकी है।
प्रदेश में 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 56.41% देखी गयी है। साल 20 से 24 के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे ज़्यादा 81.76% और 25 से 29 वर्ष में यह दर 24.39% है। देश में 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 27.63% देखी गयी है। साल 20 से 24 के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे ज़्यादा 41.53% और 25 से 29 वर्ष में यह दर 13.71% है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्य में युवाओं की एक बड़ी संख्या है जो बेरोजग़ार है।
प्रदेश में सबसे ज़्यादा रिक्त पद माध्यमिक शिक्षा विभाग (7,899), प्राथमिक शिक्षा विभाग (4,184) और चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य विभाग (3,402) में हैं।
■ पलायन: पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अभाव में पलायन सबसे बड़ी चुनौती है। लोग घर-बार छोड़कर आजीविका के लिए शहरों और कस्बों में बस रहे हैं।
उत्तराखंड (Uttarakhand) में 16919 गांव है जो की उत्तराखंड के 13 जिलों में स्थित है, इनमें से 1702 गाँव पूर्णतः निर्जन हो चुके है। यह भारत के सीमांत प्रदेश के लिए शुभ संकेत कदापि नहीं है।
ग्राम पंचायतों के प्रमुख व्यवसाय में 32.22% , मजदूरी, 45.59%, कृषि, 10.81% सरकारी सेवा है। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के सर्वे के अनुसार उत्तराखंड (Uttarakhand) में बीते 10 साल में अस्थायी और स्थायी दो तरह का पलायन हुआ है। रोजगार हेतु 6338 ग्राम पंचायतों से 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने पलायन किया है।
सर्वे रिपोर्ट में इन्हें अस्थायी पलायन की श्रेणी में रखा गया है। वहीं, 3946 ग्राम पंचायतों को स्थायी पलायन की श्रेणी में रखा गया है। इन सभी ग्राम पंचायतों से 1 लाख 18 हजार 981 लोगों ने पलायन किया है। ये लोग गांव की अपनी पुस्तैनी जमीन बेचकर घरों में ताले लटकाकर चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए।
ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन की सबसे बड़ी वजहों में अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा को भी गिना जाता है। लेकिन आयोग द्वारा किए गए सर्वे में उत्तराखंड के 50% लोगों ने पलायन की सबसे बड़ी वजह आजीविका/रोजगार की कमी को माना है।
■ स्वास्थ्य व शिक्षा: 22 वर्षो में राज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी पहाड़ सी चुनौतियां ज्यों की त्यों हैं। उत्तराखंड में लग्भग 460 सरकारी अस्पताल हैं। पहाड़ में आज भी डाक्टरों और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी बनी हुई है।
*आज उत्तराखंड (Uttarakhand) 22 वर्ष का हो गया, कानूनन बालिग भी । सकल घरेलू-उत्पाद की लगातार घटती दर चिंताएं बढ़ाने वाली हैं, प्रति नागरिक आय में मामूली-वृद्धि का ढपोर-शंख बजाना कुछ ऐसा है जैसे किसी आदमी की आय कम हो जाय और वह अपनी सन्तान का जेब-खर्च बढ़ा दे । सरकारी-मुलाजिमों के भत्तों को मौके-बेमौके लगातार बढ़ाते जाना और आम आदमी को करों के बोझ से दबाते जाना ‘अंधेरी-सुरंग की तरफ लगातार बढ़ते जाने ‘ की दासताँ बनेगी ।
राज्य में पूंजी-निवेश कैसे बढ़े ?निजी -निवेशक कैसे राज्य में आयें? हम गैर-योजनागत मदों में कैसे कटौती करें? सरकारी आमोद-प्रमोद कड़ाई से कैसे रुके, फिलहाल इसका कोई रास्ता नज़र नहीं आता? अनियंत्रित नौकरशाही पर कैसे लगाम लगे, उस पर निर्भरता कैसे घटे, यह बड़ा यक्ष-प्रश्न है? ढेरों सवाल है? जिनके समाधान खोजे जाने चाहिए । यह समाधान नौकरी-पेशा लोग नहीं बतायेंगे, विविध-क्षेत्रों के विशेषज्ञ ही कोई रास्ता बता सकते हैं, फिलहाल कोई विशेषज्ञ सरकार में नजर नहीं आता!!! सरकारी पण्डे और उनके प्रवाचक आज दिन भर उत्तराखण्ड के विकास की यशोगाथा गाते रहे, दूसरी तरफ वंचित उत्तराखण्ड की दुर्दशा पर जार-जार आंसू बहाते रहे, सरकार को कोसते रहे । उत्तराखण्ड (Uttarakhand) का ‘आम ‘और ‘ खास’ दोनों प्रजातियों के जलसों में शामिल हुआ होगा, जाहिर है उसने अपने सवालों के जवाब भी तलाशे होंगे? क्या किसी को कोई जवाब मिला? यदि मिला तो मुझे ‘पाती ‘ लिख देना, मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।