मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की, इस दौरान यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा हुई। सोनिया और कमलनाथ के अलावा इस बैठक में प्रियंका गांधी भी शामिल हुई, कमलनाथ ने एकबार फिर यूपी में गठबंधन पर जोर दिया। कमलनाथ का बसपा एवं सपा से बेहतर रिश्ता माना जाता है ऐसे में गठबंधन के लिए इन पार्टियों से वह बात करने आगे आ सकते हैं।यूपी में कांंग्रेस अगर गठबंधन करती है तो वह 150 सीटों पर दावा करेगी, यही दोनो पार्टियों के बीच रोड़ा बनेगा क्योंकि पार्टी के पास सिर्फ 15 विधायक हैं। प्रियंका गांधी यूपी की राजनीति में लगातार सक्रिय हैं लेकिन उन्होंने एकबार भी गठबंधन को लेकर सार्वजनिक मंच से कुछ नहीं कहा है।
गठबंधन से इतर बात करें, तो यूपी में चुनाव लड़ने के लिहाज से फिलहाल एक्टिव संगठन सपा के ही पास नजर आता है। कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन के दौरान सपा ने इन पार्टियों के जमीनी कार्यकर्ताओं में बड़ी सेंध लगाई थी। कहना गलत नहीं होगा कि बसपा और कांग्रेस से बाहर होने वाले ज्यादातर नेताओं की शरणस्थली के तौर पर सपा सबसे आगे है।वहीं, 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस के पास न संगठन है, न कार्यकर्ता। प्रियंका गांधी वाड्रा भी दिल्ली और ट्विटर के जरिये ही यूपी संभालती नजर आती हैं। कोरोना महामारी की वजह से प्रियंका गांधी के भी यूपी दौरों पर लगाम लगी है।
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास दो ही विकल्प दिखाई देते हैं, या तो वे गठबंधन करें या चुप रहकर सपा की मदद करें। ठीक उसी तरह जैसे पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस का सहयोग किया था। आखिर दुश्मन नंबर वन तो यहां भी भाजपा ही है। वहीं, इस संदर्भ में बसपा की बात करना भी बेमानी सा लगता है। सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती यूपी को छोड़कर पंजाब में अपनी पार्टी को मजबूत करने की जुगत भिड़ा रही हैं। चुनाव से पहले ही कांशीराम के करीबी रहे रामअचल राजभर और लालजी वर्मा को पार्टी से निकाल दिया गया है। यूपी में मायावती की सक्रियता केवल ट्विटर और औपचारिक बयानों तक ही सीमित है।