उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान करीब 1600 कर्मचारियों की मौत हुई थी, इसके पीछे कोरोना के बीच चुनाव को बड़ी वजह बताया गया। पहले तो सरकार ने इतनी मौतों को माना नहीं लेकिन हल्ला मचा और दबाव बढ़ा तो मान लिया लेकिन पांच महीने बीतने के बाद भी आर्थिक मदद नहीं की। 37 वर्षीय संतोष कुमार मलीहाबाद में अध्यापक थे, बीमार होने के बाद भी ड्यूटी लगाई गई और ड्यूटी से लौटने पर ऑक्सीजन की कमी से मर गए।
संतोष की पत्नी बताती हैं कि सरकार ने मदद की बात कही लेकिन आज तक नहीं की, संतोष के पिता हर दिन सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। ऐसा ही मामला राज किशोर के परिजनों के साथ है, परिवार के सिर पर 12 लाख का लोन है लेकिन आमदनी खत्म हो चुकी है, सरकार मदद को आगे नहीं आ रही है।
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उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बीच पंचायत चुनाव को लेकर शुरू से ही सवाल उठ रहे थे। लेकिन अब चुनाव ड्यूटी में लगे सैकड़ों शिक्षकों की कथित तौर पर कोरोना संक्रमण से हुई मौत के मामले ने एक अलग ही बहस को जन्म दे दिया है। और अब शिक्षकों के परिजनो को अपना हक़ मांगने के लिए दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर किया जा रहा है।