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ट्रस्ट के महासचिव ने बताया राममंदिर निर्माण में नही होगा लोहे का इस्तेमाल

Trust general secretary said iron will not used Ram temple

Trust general secretary said iron will not used Ram temple

अयोध्या। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई। ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय बंसल ने बताया रामनगरी अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण में एक ग्राम भी लोहा प्रयोग नहीं किया जाएगा। मंदिर को तांबे की पट्टियों से जोड़ा जाएगा। इसमें दस हजार से ऊपर तांबे की पट्टियां प्रयुक्त होंगी, जिनको दान में लिया जाएगा।

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महासचिव चम्पत राय बंसल ने बताया कि मंदिर निर्माण में पत्थरों का उपयोग होगा। पत्थरों की आयु के हिसाब से ही मंदिर की एक हजार वर्ष आयु का आकलन किया गया है। उन्होंने बताया कि इसके निर्माण में ढाई एकड़ में लगभग 1200 खंबों की पीलिंग होगी और एक पीलिंग ढाई मीटर की होगी।

इसके ऊपर मंदिर का आधार होगा। लोड के हिसाब से 60, 40 और 20 मीटर गहरे पिलर लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मंदिर के निर्माण में कम से कम 36 महीने लगेंगे। इस मंदिर निर्माण में समय दो-चार महीने आगे भी बढ़ सकता है। इसका निर्माण हवा, धूप और पानी से क्षरण की मार को पत्थर के सहने की क्षमता पर आधारित होगा।

इसके निर्माण में हम आईआईटी चेन्नई व रुड़की के साथ सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की मदद ले रहे हैं। लार्सन एंड टूब्रो कंपनी इस काम में आईआईटी के इंजीनियरों की तकनीकी सहायता भी ले रही है। इसमें 60 मीटर तक साइल टेस्टिंग और भूकंप रोधी मापन भी किया गया है।

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मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि वह सहस्त्रों वर्षों तक न केवल खड़ा रहे, अपितु भूकम्प अथवा अन्य किसी प्रकार की आपदा में भी उसे किसी प्रकार की क्षति न हो।

भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण पीसीसी टेक्नोलॉजी पर आधारित रहेगा। राम मंदिर का एरिया करीब तीन एकड़ का होगा। लोड के हिसाब से 60, 40 और 20 मीटर गहरे पिलर लगाए जाएंगे। अब सारे काम एक्सपर्ट के हाथ में है। उन्होंने कहा कि हमको 30 से 35 मीटर गहराई से नींव लानी पड़ेगी और एक मीटर व्यास के गोल आकार में लानी पड़ेगी।

तीन एकड़ में ऐसे कम से कम 1200 बिंदू खंभे होंगे। इस काम में तो जल्दीबाजी नहीं की जा सकती। इसमें आईआईटी चेन्नई ने 263 फिट गहराई की मिट्टी के सैंपल लिए हैं। इसके साथ ही भूकंप का असर जानने के लिए 60 मीटर तक साइल टेस्टिंग की गई है। भूकंप रोधी मापन भी किया गया है। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट और आईआईटी चेन्नई मिलकर टेस्टिंग रहे हैं।

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मंदिर के निर्माण में लगने वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पट्टियों का प्रयोग किया जाएगा। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रीरामभक्तों का आह्वान करता है कि तांबे की पट्टियां दान करें।

लोगों से अपील करते हुए ट्रस्ट ने कहा कि इन तांबे की पट्टियों पर दानकर्ता अपने परिवार, क्षेत्र अथवा मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं। यह तांबे की पट्टियां न केवल देश की एकात्मता का अभूतपूर्व उदाहरण बनेंगी, अपितु मन्दिर निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के योगदान का प्रमाण भी देंगी।

यह 18 इंच लंबी, तीन मिमी मोटी तथा 30 मिमी चौड़ी होंगे। हमको इसकी जरूरत है और हम लोगों से इसे दान में लेंगे। इसमे लोग अपनी ओर से अपने गांव-मोहल्ले का नाम लिखकर भेजें। हम उसको मंदिर में लगाएंगे।  मंदिर निर्माण में 10,000 तांबे की पट्टियां व रॉड भी चाहिए।

चम्पत राय ने कहा कि 1991 से 12 फीट नीचे के लेवल पर जब गए तो वहां एक प्राचीन शिवलिंग मिला है। कसौटी पत्थर के काले रंग के सात चौखट की नक्काशी, कमल के फूल का आमलख, खंबों पर बनी गणपति और यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियां मिली हैं। 12 से 15 टन पत्थरों के टुकड़े निकले हैं।

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हम उसको दर्शनीय बनाकर लोगों के लिए रखेंगे। जिसके लिये म्यूजियम बनाना पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष करीब दो करोड़ लोग अयोध्या दर्शन के लिए आते हैं। अब राम मंदिर बन जाने के बाद यह आंकड़ा काफी बढ़ जाएगा। इसी कारण सरकार यहां पर बस, रेल, हवाई जहाज आदि सुविधाओं के बारे में सोच रही है।

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