सियाराम पांडेय ‘शांत’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पहले बजट चुनाव की लेखा-बही हुआ करते थे। योजनाएं कुछ लोगों के नाम से बना करती थी। ऐसी बनती थी जो अमूमन पूरा ही नहीं हो पाती थी, लेकिन केंद्र सरकार के हालिया बजट पर भी सवाल उठे हैं। बजट को चार राज्यों के आसन्न चुनाव से जोडक़र विपक्ष ने देखा है। राजनीतिक दल बजट बनाए और उसमें राजनीति न हो, ऐसा कैसे संभव है? हर राजनीतिक दल अपने तौर-तरीके से अपनी कार्य संस्कृति विकसित करता है।
कुछ लोग पायजामें में जेब बनाते हैं और कुछ लोग नहीं बनाते ,लेकिन यह ऐसा विषय नहीं है जिसे कि गाया जाए। किसी भी नेता की अच्छाई इस बात में निहित है कि उसकी नीतियां जनता के हितों के कितने करीब हैं। उनकी समस्याओं का समाधान कितना कर पा रही है या उनकी सुविधाओं में कितना कुछ इजाफा कर पा रही हैं। विपक्ष से प्रशंसा की अपेक्षा नहीं की जा सकती लेकिन अपने हिस्से की जिम्मेदारी तो बिना किसी शोर-शराबे के निभाई ही जा सकती है।
चौरी चौरा कांड के शताब्दी समारोह के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री ने ढेर सारी बातें ऐसी कही हैं जो देश को विकास की राह पर ले जाने वाली हैं, उसे सकारात्मक सोच से जोडऩे वाली हैं लेकिन यह भी उतना ही सच है कि बिना किसी की आलोचना किए भी बड़ी से बड़ी बात कही जा सकती है। आज देश में जितने भी राजनीतिक फसाद हो रहे हैं, उसमें श्रेय और प्रेय की राजनीति ही प्रमुख है।
चौरी चौरा जनाक्रोश शताब्दी समारोह में केवल शहीदों की ही बात नहीं हुई, देश के विकास के तमाम आयामों पर भी चर्चा हुई। केंद्रीय बजट पर चर्चा हुई। किसानों पर चर्चा हुई। शहीदों की उपेक्षा पर चर्चा हुई। विपक्ष पर हमले भी हुए, लेकिन शालीनता के दायरे में। सच भी है। लोकतंत्र में ऐसा होना भी चाहिए। अपने सपनों की पूर्ति की चाहत तो सबको होती है लेकिन जो देश की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों के सपनों को पूरा करने की बात सोचे,जीना तो उसी का सार्थक है।
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चौरी चौरा कांड पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता तो हर साल होती रही है। उस पर अखबारों में सामग्री भी छपती रही है लेकिन इस बार चौरीचौरा कांड की जनशताब्दी पर पूरे उत्तर प्रदेश में उत्सव मनाने की, उन पर डाक टिकट जारी करने की बात सोची गई। यह बड़ी बात है। चौरी चौरा कांड का नाम चौरी चौरा जनाक्रोश करने के बारे में सोचना ही शहीदों को अपने तरह का बेहद अलहदा और बड़ा सम्मान है और उससे भी बड़ा सम्मान है, शहीदों के स्मारकों का वंदेमातरम का गायन। चौरी चौरा कांड के नायकों के 99 परिजनों का सम्मान। शहीद स्थल पर जले, शहीदों की याद में सांस्कृतिक कार्यक्रम हों, एक साथ हजार से ज्यादा लोग वंदे मातरम गाएं, वल्र्ड रिकॉर्ड बनाएं, इससे विलक्षण और अभूतपूर्व क्षण भला और क्या होगा?
उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में चौरी चौरा जनाक्रोश की शताब्दी मनाई जा रही है। यह एक ऐसा आयोजन है जो केवल एक दिन की औपचारिकता तक सीमित नहीं है। यह पूरे एक साल चलने वाला कार्यक्रम है। इस समारोह की शुरुआत वर्चुअली ही सही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। मु ख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केवल चौरी चौरा के शहीदों को ही याद नहीं, उनके बहाने उत्तर प्रदेश के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देने का अभियान शुरू किया है। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में शहीदों के स्मारकों पर समारोह आयोजित करना प्रदेश के हर नागरिक को आह्लादित भी करता है और उन्हें राष्ट्रीय चिंतनधारा से जोड़ता भी है।
यह कार्यक्रम इसलिए भी अहम हो जाता है कि गोरखपुर में चौरीचौरा महोत्सव साल भर चलेगा। इसमें वंदे मातरम गायन का भी रिकॉर्ड बनेगा। साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। इसमें बड़े और छोटे कलाकारों की सहभागिता होगी और उससे भी बड़ी महनीय बात यह कि स्वातंत्र्यवीर क्रांतिकारियों के जीवनवृत्त, बलिदान और शैर्यगाथाओं से लोग रूबरू होंगे। योगी सरकार ने पाठ्यक्रमों में भी क्रांतिकारियों के जीवनवृत्त को शामिल करने का दावा किया है।
प्रधानमंत्री ने भी 31 जनवरी को लेखकों से क्रांतिकारियों की जीवन गाथा लिखने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री की अपील का मतलब है कि देश भर की भूली बिसरी हस्तियों को याद करने का काम होगा। इस तरह के प्रयास तो आजादी के तुरंत बाद से ही आरंभ हो जाने चाहिए थे लेकिन ‘जब जागे तभी सबेरा।’ इस मुहिम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मु यमंत्री योगी आदित्यनाथ बधाई के पात्र हैं। जिस मंगल उद्देश्य के साथ इस चौरीचौरा जनाक्रोश शताब्दी समारोह को हाथ में लिया है,वह अपने मकसद में सफल हो, यही कामना है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर बहुत ही उल्लेखनीय बात कही है। उनका मानना है कि सौ साल पहले चौरीचौरा में क्रांतिकारियों द्वारा आगजनी की गई थी लेकिन क्यों की गई थी, उन उद्देश्यों को जानने-समझने की जरूरत है। वह आग केवल थाने में ही नहीं लगी थी बल्कि लोगों के दिलों में भी लगी थी। उन्होंने स्वीकार किया है कि चौरी चौरा कांड के शहीदों को इतिहास में अपेक्षित जगह नहीं मिल पाई लेकिन यहां की मिट्टी में मिला उनका खून हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि हम चौरी चौरा के शहीदों को इतिहास की पुस्तकों में मुक मल जगह दिलाएं।
इस अवसर पर उन्हों ने शहीदों को फांसी के फंदे से बचाने वाले, अंग्रेजी अदालत में उनकी पैरवी करने वाले बाबा राघव दास और महामना मदन मोहन मालवीय को भी याद किया। उन्होंने इस बात की ओर भी देश का ध्यान इंगित किया कि शताब्दी समारोह के कार्यक्रमों को लोक कला और आत्मनिर्भरता से जोडऩे का प्रयास किया गया है। सामूहिकता की जिस शक्ति से देश को गुलामी की बेडिय़ों से मुक्ति मिली थी वही शक्ति भारत को दुनिया की बड़ी ताकत भी बनाएगी। यही शक्ति आत्मनिर्भरता का मूल आधार है।
प्रधानमंत्री बोलें और देश के विकास में गांव और किसान की बात न हो, ऐसा मुमकिन नहीं है। उन्होंने सुस्पष्ट तौर पर कहा है कि चौरी चौरा कांड के नायकों को सहयोग देने में यहां के किसानों की बड़ी भूमिका रही है। आजादी की लड़ाई में भारतीय किसानों ने भी क्रांतिकारियों जैसी ही भूमिका निभाई है। यह बात उन्होंने तब कही है जब हजारों किसान दिल्ली के टीकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि सुधार कानूनों को खत्म करने के लिए दो माह से आंदोलन कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने देश भर के किसानों को आश्वस्त किया है कि उनकी सरकार ने किसानों के हित में पिछले छह साल में बहुत काम किए गए हैं। मौजूदा बजट में किसानों के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। किसानों को कहीं भी अपनी फसल बेचने की आजादी दी गई है। सरकार के मौजूदा सभी निर्णय किसानों की समृद्धि और बेहतरी का माध्यम बनेंगे। किसानों की जमीन पर किसी की बुरी नजर नहीं पड़ेगी। बजट पर रोशनी डालते हुए उन्होंने कहा है कि बजट से पहले लोग कह रहे थे कि कोरोना संकट की वजह से सरकार को जनता पर बोझ डालना ही पड़ेगा। कर बढ़ाना पड़ेगा, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार ने देश को आगे बढ़ाने के लिए ज्यादा खर्च करने का फैसला लिया है।