लखनऊ डेस्क। भारतीय राजनीति में महिलाओं के समान अधिकार के लिए एक लंबी यात्रा तय की है। स्त्री-पुरूष समानता के विरोध में लड़कर राजनीति में प्रवेश के लिए प्रेरणादायक मार्ग प्रशस्त किया। समय और समय से आगे ये वे वीर शक्तिशाली महिलाएँ हैं-
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प्रतिभा पाटिल- 1962 में प्रतिभा पाटिल महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्य के रूप में राजनीति में शामिल हुईं। गांधी परिवार के साथ उनकी भद्र शर्तों ने उन्हें 2006 में राष्ट्रपति पद का दायित्व निभाने में सक्षम बना दिया। उन्होंने 2007 से 2012 तक भारत के 12वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और महिला सशक्तिकरण के पक्ष के समर्थन में आगे रहीं।
सुषमा स्वराज- सुषमा स्वराज अपने स्नातक काल से ही राजनीति में शामिल थीं। वह सिर्फ 25 वर्ष की आयु में जनता पार्टी की कैबिनेट मंत्री बनीं और इंदिरा गांधी के बाद पद संभालने वाली दूसरी महिला थीं। इन्होंने 1998 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनकर प्रसिद्धि पाई हालांकि उन्होंने यह सेवा सिर्फ तीन महीने की। वर्तमान में वह केंद्रीय विदेश मंत्री हैं। उन्होंने समाज के पुरूषों को यह सुझाव दिया है कि लैंगिक भेदभाव को मिटाने के लिए अधिक गृहकार्य करें।
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ममता बनर्जी- ‘दीदी’ के नाम से लोकप्रिय ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत काफी पहले की थी। 1997 में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की, जो बंगाल का सबसे शक्तिशाली विपक्ष बन गया। 2011 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के 34 साल के शासन को समाप्त कर, यह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। ममता ने हाल ही में तृणमूल कांग्रेस में 35 प्रतिशत महिलाओं के लिए जिसमें 50 प्रतिशत स्थान स्थानीय निकायों में आरक्षित था गर्व व्यक्त किया है।
सोनिया गांधी- सोनिया गांधी का कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल सबसे लंबा था। नेहरू गांधी परिवार के प्रतिष्ठित वंश की सदस्या, इस प्रखर महिला नेता ने 1998 में राजनीति में प्रवेश किया। 2006 में इन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का गठन किया। 2017 में अपना दायित्व अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंपकर वह कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हो गईं।