.. हमें गर्म हवाओं को रोकना होगा, नहीं तो ये समूचे वातावरण में ‘महामारी’ की तरह पसर जाएंगी और परिवेश के आखिरी छोर तक को अपनी लपटों से झुलसा देंगी, ये जिम्मेदारी आपकी है, इसे आपको रोकना होगा।
“जब तोप मुकाबिल हो? तब अखबार निकालो”
कुमार विकल को याद करते हुए, हमें आज यह भी याद रखना होगा कि रंगोत्सव से पहले होलिका-दहन भी होता है, सन्देश साफ है कि जो अवांछित है, उसको जलाना होगा।
कुछ सैंकड़ा लोगों के “अच्छे दिनों”, शेष भारतवंशियों के “दुखी दिनों” में शब्दों को पत्थर बनना होगा, स्थितप्रज्ञता खिलाफ किसी को तो निर्णायक घोष करना होगा, इतिहास की उधड़ी-कमीज के रफूगर होने का तमगा लगाये घूम रहे लोगों के बेलगाम रथ को आखिर किसी को तो रोकना होगा।
हम शब्दवंशियों का युद्ध लोकतंत्री कहे जा सकने वाले राजवंशी टाइप की मानसिकता वाले लोगों से है। कुछ लोगों का संदेश है कि पूंजी और शब्दवंशियों के बीच चली आ रही पुरानी दुश्मनी को खत्म कर दिया जाना चाहिए, ये दीगर है कि पूंजी और शब्दवंशियों की अन्योन्याश्रिता या मित्रता पुरानी है लेकिन वह कुछ ऐसी रही है कि उसके नाजायज होने की ओर नजर कमी जाती रही है। प्रायः शब्दवंशियों के हल्कों में यह सर्वानुमति सी ही है कि थोड़े बहुत इमदाद जरूरी है जो ले लेनी चाहिए। छोटे स्तर पर, जमीनी स्तर पर शब्दवंशियों के चेहरे पर तकलीफ की हल्की सी लकीर खिंची हुई हमेशा देखी जा सकती है कि हमें समझौता करना पड़ा है, एक मुक्ति – बोधीय किस्म का अपराध-बोध जमीनी स्तर पर “आम” रहा ही है।
इसलिए आज के इस मौके पर मेरी “खास” से अपील होगी कि वो “आम” को कविता लिखने दें, लतीफे सुनाने, लिखनेदिखाने का उन्हें अभ्यस्त ना बनाएं, उन्हें जहर गटकने के लिए विवश ना करें। मैं हस्तिनापुर का हिस्सा रहा हूं, और आज भी हूं। आपकी बिरादरी में ही कई वर्ष बिताने के बाद हस्तिनापुर के सिंहासन का हिस्सा बना हूँ, मैंने रात के काले स्याहअँधेरे में समझौते होते हुए देखे हैं। मेरी ख़ास से अपील होगी कि कुछ इमदाद के बदले थोड़ा झुकें जरूर, लेकिन रेंगे नहीं। मुझे मालूम है कि किन-किन लतीफों को रोका जाता है, किन-किन को लिखा जाता है। सरकारी विज्ञप्तियां खबर नहीं है, खबर मिलेगी, गाँव की मेड़-मड़ियांव से, शहर के गर्द – गुबार भरे मौहल्लों से, आखिरी आदमी से, जहाँ जाना हमने छोड़ दिया है, वातानुकूलित कक्षों से निकलकर वातानुकूलित कक्षों में पहुंचकर लतीफे बटोरने से अच्छा है कि कविता को ही तलाशें, जो हमारा कुलधर्म है। सरकारों में रहते जब मैं अपने मित्रों को कविता की जगह लतीफे लिखते-दिखाते, और सुनाते हुए देखता हूं, जहर टकते हुए देखता हूं, तो मन खिन्न हो जाता है और दुष्यंत याद आते हैं,
.. 26 मार्च, 2021 को उत्तराखण्ड पत्रकार महासंघ के होली मिलन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी अभियान के नेतृत्व पुरुष – न्यायविद चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay) के प्रबोधन के कुछ अंश..