भारत की ‘आयरन लेडी’

भारत की ‘आयरन लेडी’ की दीवानी है दुनिया, देश के लिए जीते कई मेडल

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नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक स्वाति सिंह आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स की पदक विजेता इस खिलाड़ी को चोट के चलते भले ही टोक्यो ओलंपिक में न खेल पाने का मलाल हो, लेकिन सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसकों की एक बड़ी जमात है। स्वाति सिंह के खेल के साथ-साथ उनकी खूबसूरती की भी दीवानी है। मूल रूप से बनारस की रहने वाली स्वाति पिछले दो दशक से यूपी की सबसे भरोसेमंद भारोत्तोलकों में शुमार हैं। अपने दो दशक के कॅरियर में स्वाति सिंह आठ बार  यूपी की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुनी जा चुकी हैं।

2009 में पहली बार भारतीय सीनियर टीम में चुनी गईं

साल 2000 में भारोत्तोलन की दुनिया में कदम रखने वाली स्वाति को राष्ट्रीय सीनियर टीम तक का सफर तय करने में नौ साल लग गए। हालांकि इन नौ सालों में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ढेरों पदक जीतकर अपने दमखम का लोहा मनवाया। 2009 में सीनियर टीम में होने की वजह से उन्हें 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रकुल खेलों में भारतीय टीम के प्रतिनिधित्व का मौका मिला, मगर ऐन वक्त पर चोट के चलते वे पदक से चूक गईं। यहां उन्हें चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता कांस्य

तीन साल के अंतराल के बाद साल 2013 में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय सीनियर टीम के लिए चुना गया। 2014 में स्काटलैंड में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए कांस्य पदक जीता। राष्ट्रकुल खेलों से पूर्व इंग्लैंड में लगे भारतीय टीम के एक माह के विशेष प्रशिक्षण शिविर में भी वे शामिल रहीं।2004 में दक्षिण अफ्रीका में जीता पहला

अंतरराष्ट्रीय पदक

स्वाति उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शुमार हैं, जिन्होंने वेटलिफ्टिंग के अलावा पॉवरलिफ्टिंग में भी अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल किया है। 2004 में दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में संपन्न जूनियर विश्व पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में उन्होंने असाधारण प्रदर्शन करते हुए भारत के लिए रजत पदक जीता था। पदक जीतकर स्वदेश लौटने पर उनका जोरदार स्वागत हुआ था।

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पदकों के साथ कई सम्मान भी झोली में

अपने दो दशक के कॅरियर में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 24 से अधिक पदक जीत चुकी ग्लैमर गर्ल स्वाति को पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से नवाजा। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा सात बार उन्हें ‘आयरन लेडी आफ यूपी’ खिताब हासिल हो चुका है। ‘काशी रत्न’, ‘अवध रत्न’, ‘सेंचुरी स्पोर्ट्स अवार्ड’ जैसे प्रदेश के प्रतिष्ठित खेल सम्मान भी उनकी झोली में आ चुके हैं।

खेल के बूते मिली रेलवे में नौकरी

राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन में चमक बिखेरने वाली इस बनारसी बाला को खेल के दम पर ही रेलवे में जॉब आफर हुआ था। वे फिलहाल लखनऊ में तैनात हैं। रेलवे से जुड़ने के बाद वे निर्विवाद रूप से अपने भार वर्ग में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार हैं।

खेलो इंडिया स्कीम से जुड़कर युवा खिलाड़ियों को किया प्रेरित

स्वाति उन धुरंधर खिलाड़ियों में शुमार हैं जिन्हें भारत सरकार ने खेलो इंडिया स्कीम से जोड़ा। सरकार की इस मुहिम का हिस्सा बनकर उन्होंने देश भर के युवा खिलाड़ियों के साथ न केवल अपने अनुभव साझा किए बल्कि उन्हें खेलने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित भी किया।

मांसपेशी की चोट ने टोक्यो ओलंपिक से किया दूर

बीते साल थाईलैंड और चीन में संपन्न दो ओलंपिक क्वालिफायर की बाधा पार करने के बावजूद स्वाति इस साल टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में भारतीय दल का हिस्सा नहीं होंगी। मांसपेशी में गंभीर चोट के चलते वे कोर ग्रुप से बाहर हो गई हैं। डाक्टरों की सलाह पर फिलहाल आराम कर रही हैं। लेकिन राष्ट्रीय टीम में अपनी वापसी की उम्मीद उन्होंने छोड़ी नहीं है।

बनारस के बलुआबीर में रहता है परिवार

स्वाति का पुश्तैनी मकान बनारस के बलुआवीर मोहल्ले (आदमपुर) में हैं। उनके पिता कामेश्वर सिंह समाजसेवी हैं। चार बहनों में स्वाति दूसरे नंबर पर हैं। उनका एक भाई भी है जो दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है।

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