गांव की राजनीति में युवा चेहरे बढ़-चढ़ कर दिख रहे हैं। लॉकडाउन में गांव आए ऐसे युवा भी चुनाव में ताल ठोक रहे हैं जो शहरों में वापस नहीं लौट पाए हैं। इनमें से कई इसे मंदी के इस दौर में रोजगार और प्रतिष्ठा का बेहतर अवसर मानते हैं। यहां तक कई उच्च शिक्षा प्राप्त युवा भी पंचायत चुनाव (Panchayat Elections) को अवसर मान रहे हैं।
- रसूख और बेहतर रोजगार का जरिया पैदा कर रहा लालच
- कई जगह पिता ने ही पुत्र को किया लॉन्च
- प्रधानी से जिला पंचायत तक आजना रहे दांव
बस्ती जिले की नेवादा ग्राम पंचायत में प्रधान पद पर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर युवा हैं। निवर्तमान प्रधान जय प्रकाश शुक्ल ने अपने बेटे विवेक शुक्ला को मैदान में उतारा तो विरोधियों ने भी अपने बेटों को आगे कर दिया। गांव के नुक्कड़ पर बेटे की तस्वीर से बना गेट दिखाते हुए जय प्रकाश कहते हैं, इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद बेटे ने अमृतसर में नौकरी शुरू कर दी, लेकिन ग्राम प्रधान रहीं मेरी मां की मृत्यु के बाद उसे प्रधान का उम्मीदवार चुना गया।
रायबरेली जिले के बछरावां ब्लॉक के ठकुराइन खेड़ा गांव में रहने वाली स्नातक तक पढीं ऋचा पाल ने जिला पंचायत सदस्य के लिए पर्चा दाखिल कर दिया है। ऋचा कहती हैं, नौकरी करके हम अपना ही भविष्य बना सकते थे, गांव की राजनीति में हम समाज का भला कर पाएंगे।
आबादी 46 फीसदी, चुने गए सिर्फ 13 फीसदी ही युवा
निचले तबके के युवा भी जान रहे हैं कि समाज में ऊपर आने का सरल रास्ता गांव की राजनीति में ऊपर आना। सोनभद्र के दुद्धी से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे 28 वर्ष के भीम सिंह इन चुनावों को युवाओं के लिए एक सुनहरा मौका मानते हैं। भीम बताते हैं कि इससे अच्छा क्या है कि गांव समाज का विकास हो, हमें भी रोजगार मिल जाए। इस बार सोनभद्र से ज्यादातर युवा प्रत्याशी ही हैं, पहले युवाओं को कोई तवज्जो नहीं देता था। अगर जीत गए तो रोजगार का सुनहरा मौका भी है।
पंचायत से सियासत की शुरुआत