लेखक-श्री तोखन साहू
ऐसे वक्त में जब हम स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission) की दसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं, हम एक दशक तक चलने वाली एक ऐसी परिवर्तनकारी यात्रा के साक्षी बन रहे हैं, जिसने भारत में साफ सफाई और स्वच्छता को एक नए रुप में परिभाषित किया है। 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया यह मिशन महज़ एक पहल नहीं, बल्कि एक आंदोलन था – देश के हर नागरिक को स्वच्छ, स्वस्थ और विकसित भारत में योगदान करने का आह्वान। आज, एसबीएम (Swachh Bharat Mission) ने केवल शौचालयों के निर्माण और पहुंच बढ़ाने से आगे बढ़ते हुए, प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए समुदायों को सही मार्गदर्शन देने पर ध्यान केंद्रित किया है। यह बदलाव स्वच्छता के लिए जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देता है और लोगों को समाज की भलाई में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है। खुद प्रधानमंत्री द्वारा इस पहल को आगे लाने के प्रयास की बदौलत, भारत आज खुले में शौच से मुक्त हो चुका है और इस पहल ने हमारे समुदायों में जन भागीदारी के भाव को बल दिया है।
शहरी क्षेत्रों में एसबीएम (Swachh Bharat Mission) ने अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। प्रभावी अपशिष्ट पृथक्करण प्रणालियों के कार्यान्वयन से लेकर अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना तक, देश भर के शहरों ने आज नए समाधानों को खुले दिल से अपनाया है, जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2014 -2024 के बीच किए गए दूरदर्शी नेतृत्व और अथक प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है।
वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण, स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरूआत ने शहरों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है, ताकि वे अपने साफ सफाई और स्वच्छता मानकों को बढ़ाने के लिए प्रेरित हो सकें। इस प्रयास ने स्वच्छता को स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण मूल्यों के साथ एकीकृत किया है।
एसबीएम (Swachh Bharat Mission) के केंद्र में विभिन्न समुदायों की सक्रिय भागीदारी है। स्कूली बच्चों से लेकर महिला समूहों तक, नागरिक आज स्वच्छता के चैंपियन बन गए हैं। राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय नीतियों को लागू किया है, स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित किए हैं, शहरों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता रणनीतियों को तैयार किया है और सार्वजनिक शौचालयों और अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, इसके साथ ही नगरपालिका कर्मचारियों और सफाई कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से क्षमता निर्माण में भी निवेश किया गया है। राज्यों ने स्वच्छ सर्वेक्षण जैसे उपकरणों का उपयोग करते हुए, इस मुहिम के तहत हो रही प्रगति को ट्रैक करने और ज़रुरी बदलाव करने के लिए मजबूत निगरानी और मूल्यांकन तंत्र के साथ अपने प्रदर्शन पर काम किया है। विभिन्न क्षेत्रों के साथ सहयोग करते हुए मिशन ने स्थानीय निकायों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिकों को एक सामान्य लक्ष्य की दिशा में मिलकर काम करने के लिए सशक्त बनाया है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर देने की वजह से संसाधनों को जुटाने और तकनीकी नवाचारों में और सुविधा मिली है, जिससे स्वच्छता समाधान अधिक सुलभ और टिकाऊ हुए हैं। इसके अतिरिक्त सफाई मित्र सुरक्षा शिविर जैसी पहल स्वास्थ्य जांच प्रदान करती है और सामाजिक सुरक्षा लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है, जो सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए मिशन के व्यापक दृष्टिकोण पर जोर देती है।
यह सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है कि स्वच्छता सेवाएं, समावेशी हों और हाशिए पर रहने वाले लोगों तक न्यायसंगत तरीके से पहुंचे और एसबीएम ने सफलतापूर्वक ऐसा किया है। ऐसा ही एक उदाहरण, जो मैंने करीब से देखा है, वह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के अंबिकापुर का है। एक विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन योजना के ज़रिए, करीब 200,000 निवासियों वाले इस शहर ने लैंडफिल कचरे को प्रभावी ढंग से कम किया है और इसे स्रोत पर प्रबंधित करते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता अर्जित की है। इस सफलता का एक प्रमुख कारण है, 470 सफाई कर्मियों का एक समर्पित समूह, जो शहर के लिए कचरे का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित जीवंत महिलाओं का एक समूह है। उनके प्रयासों ने न केवल राजस्व उत्पन्न करने के लिए बल्कि समावेशी रणनीतियों के सामाजिक-आर्थिक लाभों का प्रदर्शन करते हुए, अंबिकापुर नगर पालिका को सामुदायिक सेवाओं में पुनर्निवेश करने में भी सफलतापूर्वक मदद की है।
अंबिकापुर में महिलाएं संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को चलाती हैं – संग्रह और पृथक्करण से लेकर प्रसंस्करण तक –वे कचरे को दायित्व के बजाय एक संसाधन के रूप में देखती हैं। यह मानसिकता रीसाइक्लिंग और संसाधन वसूली को प्रोत्साहित करती है और अपशिष्ट चक्र को प्रभावी ढंग से संचालित करती है। जिम्मेदार अपशिष्ट निष्पादन के बारे में समुदाय को शिक्षित करके, वे पर्यावरण रखरखाव में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती हैं, आर्थिक अवसरों के अवसर बनाती है और टिकाऊ प्रथाओं को प्राथमिकता देती हैं। ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन से शुरूआत को ज्यादा अहमियत देने वाले इस नज़रिए ने, राज्यों को अपशिष्ट प्रबंधन में प्रशंसनीय प्रगति करने में सक्षम बनाया है।
अंबिकापुर की महिलाओं के नेतृत्व वाली स्वच्छता पहल, उन टियर II और टियर III शहरों के लिए एक उम्मीद भरे प्रयास के रूप में कार्य करती है, जो प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों पर काम करना चाहते हैं। हांलाकि हर समुदाय की चुनौतियां अलग होती है, अंबिकापुर मॉडल, सामुदायिक जुड़ाव द्वारा संचालित स्थानीय समाधानों की शक्ति को दर्शाता है। जैसे-जैसे शहरी आबादी बढ़ रही है और अपशिष्ट प्रबंधन तेजी से ज़रुरी होता जा रहा है, दुनिया भर के शहर अंबिकापुर से प्रेरणा ले सकते हैं। सही समर्थन और प्रतिबद्धता के साथ, हम अपशिष्ट प्रबंधन को विकास और सशक्तिकरण के संसाधनों में तब्दील कर सकते हैं, जिससे समुदायों और पर्यावरण दोनों को लाभ होगा।
स्वच्छ वातावरण में होता है ईश्वर का वास, बढ़ती है सुख-समृद्धि : एके शर्मा
हमारे पास देश भर में महिला सशक्तिकरण के तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे साफ सफाई और स्वच्छता के मिशन के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में महिलाओं की अहम भूमिका साफ दिखाई देती है। अपशिष्ट प्रबंधन, सामुदायिक शिक्षा और स्वास्थ्य पहलों में महिलाएँ सबसे मज़बूत नेतृत्व की भूमिका अदा करती हैं, जो उन्हें बदलाव का एक अहम केंद्र बिंदु बनाता हैं। अपनी सक्रिय भागीदारी के ज़रिए, उन्होंने न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान दिया है, बल्कि साफ सफाई और स्वच्छता के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को भी बदला है। एसबीएम द्वारा लाए गए प्रभावों में से एक है- स्वच्छता भूमिकाओं में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों का निर्माण। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन जैसी पहलों ने महिलाओं को अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और प्रसंस्करण प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान किए हैं। सफाई कर्मी के रूप में महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता मिलती है और साथ ही उनके समुदायों में उनका ओहदा बढ़ता है। यह आर्थिक सशक्तिकरण और पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती देते हुए उनके आत्मसम्मान और मान्यता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
महिलाएं सामुदायिक बदलाव लाने और जागरूकता अभियानों में भी अहम भूमिका निभाती हैं। वे परिवारों को स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं, अपशिष्ट पृथक्करण और स्वच्छता के महत्व के बारे में शिक्षित करती हैं। उनकी भागीदारी स्वच्छता की संस्कृति को बढ़ावा देती है और एसबीएम की पहलों में सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
अंत में, एसबीएम (Swachh Bharat Mission) में महिलाओं के आने से न केवल स्वच्छता पहल की प्रभावशीलता में इजाफा हुआ है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास और लैंगिक समानता को भी बढ़ावा मिला है। और अगर भविष्य में ये मिशन और कामयाबी हासिल करेगा। अब स्वच्छता प्रथाओं में स्थिरता सुनिश्चित करने, शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान करने और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित नज़रियों का उपयोग करके, हमारा लक्ष्य अपनी रणनीतियों को और सुधारना तथा अपनी पहुंच का विस्तार करना है, ताकि देश के हर कोने तक स्वच्छता का फायदा पहुंच सके। इसके अलावा, हमें भविष्य की पीढ़ी में भी साफ सफाई और स्वच्छता के मूल्यों को स्थापित करना जारी रखना होगा। स्वच्छता के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने वाले शैक्षिक कार्यक्रम, पिछले एक दशक में हमारे द्वारा बनाई गई गति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण साबित होंगे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, आइए हम स्वच्छता की भावना को अपनाते हुए और इसे अपने दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाते हुए एकजुट होकर काम करना जारी रखें। ये सफर अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन दृढ़ संकल्प और सामूहिक कार्रवाई की मदद से, एक स्वच्छ और स्वस्थ भारत बनाना हमारे हाथ में है।