भारत सरकार नशा मुक्ति अभियान चला रही है। देश के 272 जिलों में इस साल अगस्त से ही यह अभियान चल रहा है जो अगले वर्ष 31 मार्च तक चलेगा। अगर इसे और पहले जून से कहें तो शायद किसी को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए क्योंकि 26 जून को ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ मनाया जाता है और इसी दिन ‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’ ने नशा मुक्ति अभियान का लोगो व टैग लाइन ‘नशा मुक्त भारत-सशक्त भारत’ भी जारी किया था। इस लिहाज से देखें तो यह अभियान जून से ही पूरे देश में शुरू हो गया था।
यह अभियान संस्थागत सहयोग पर तो आधारित है ही, बल्कि इसमें अधिकांश सरकारी विभागों का भी सहयोग लिया जा रहा है। हालांकि हर साल लोगों को नशे से निजात दिलाने के लिए 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस, 31 मई को अंतरराष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्टूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाया जाता है। मगर सच्चाई यह है कि ये सारी दिवस कागजी साबित हो रहे हैं।वजह क्या है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। प्रतीकात्मकता से काम नहीं चलता, उसके लिए दिल से लगना होता है। सुविचारित रणनीति बनानी और मेहनत करनी पड़ती है। केवल अीिायान चलाने से कुछ नहीं होने वाला।
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नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नशा मुक्त भारत अभियान के लिए चिह्नित ज़िलों में सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसके बाद भी जहरीली शराब और मादक द्रव्यों के सेवन से देश के विभिन्न राज्यों में लोगों की मौत हो रही है। इस पर विचार मंथन करने और सुनियोजित रणनीति बनाने की जरूरत है। इसमें संदेह नहीं कि मादक द्रव्यों के सेवन में कुछ कमी तो आई है लेकिन उतनी नहीं, जितनी कि समझी जाती रही है। इस अभियान के तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नशा मुक्ति में कार्यरत संस्थानों के लिए धन संग्रह कर रहा है। साथ ही युवाओं के बीच नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में नशा मुक्ति अभियान चला रहा है।
चूंकि जिस समय यह योजना शुरू हुई, उस समय स्कूल-कॉलेज और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद थे। अधिकारी भी अपने घरों से बाहर निकलने और किसी से मिलने में हिचकते थे लेकिन अब स्कूल-कॉलेज खुल गए हैं। वहां रौनक धीरे-धीरे लौटने लगी है। वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के भी कमोवेश यही हालात हैं। ऐसे में उम्मीद बनती है कि नशामुक्त भारत अभियान अब अपने पूरे चरम पर है। अगर ईमानदारी से इस अभियान को अंजाम दिया गया तो इसके बेहतर नतीजे भी देखने को मिलेंगे। इस अभियान में जागरूकता सृजन कार्यक्रम, समुदाय तक पहुंच और दवा पर निर्भर आबादी की पहचान, उपचार सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सेवा-प्रदाताओं के लिए क्षमता-निर्माण कार्यक्रम को शामिल किया गया हैं।
मंत्रालय नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम के सभी पहलुओं पर निगरानी का कार्य कर रहा है। नशे की समस्या का विस्तार से मूल्यांकन करने, नशे के आदी व्यक्ति का उपचार एवं उनका पुनर्वास करने, लोगों में नशे की प्रति जागरुकता सृजित करने के साथ-साथ देशभर में नशा मुक्ति केंद्र चलाने के लिए एनजीओ को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है लेकिन उसके अभी तक के प्रयास बहुत सार्थक रूप में सामने नहीं आ सके हैं। उत्तर प्रदेश के 32 जिलों का इस बावत चयन किया गया है। अभियान को चलाने के लिए हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में 13 सदस्यीय कमेटी बनी हुई है। कमेटी में पुलिस अधीक्षक व जिला जज की ओर से नामित प्रतिनिधि, जिला चिकित्सा अधीक्षक, उच्च शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि, महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग से नामित सीडीपीओ, नशा मुक्ति के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि, डीएम से नामित सिविल सर्विस से रिटायर अधिकारी और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से नामित प्रतिनिधि सदस्य शामिल है। जिला समाज कल्याण अधिकारी को समिति का सदस्य सचिव बनाया गया है।
मध्यप्रदेश सरकार प्रदेश के 15 जिलों भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, होशंगाबाद, छिंदवाडा, नीमच, दतिया, रीवा, मंदसौर, रतलाम, नरसिंहपुर, सतना में नशामुक्त भारत अभियान चला रही है। इस अभियान का प्रारंभिक उद्देश्य ऐसे व्यक्ति जो नशा नहीं करते और भविष्य में भी वे नशों से कैसे देर रहें, के बारे में उन्हें जागरूक किया जाना है।
गौरतलब है कि 90 प्रतिशत फेफड़े का कैंसर, 50 प्रतिशत ब्रोंकाइटिस एवं 25 प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है। मुंह, गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रेशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है। अगर यह पूछा जाए कि कौनसी बीमारी नशे के सेवन से नहीं होती तो कदाचित गलत नहीं होता। में एक दिन में 11 करोड़ सिगरेट फूंके जाते हैं। इस तरह देखें तो एक वर्ष में 50 अरब धूम्रपान पर उड़ा दिया जाता है। हालात यह है कि मौजूदा दौर में नशा फैशन बन गया है।
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देश के 20 प्रतिशत राज्य नशे की गिरफ्त में हैं। इनमें पंजाब राज्य का नाम प्रमुखता से टॉप पर है। इस पर उड़ता पंजाब नाम से फिल्म तक बन चुकी है। नशेबाजी में पंजाब के बाद मणिपुर और तमिलनाडु का नाम आता है। सर्वाधिक प्रचलन शराब का है। शराब सभी प्रकार की बुराइयों की जड़ है। शराब के सेवन से मानव की सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित−अहित और भले−बुरे का अन्तर नहीं समझ पाता। शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ−साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है। शराबी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। गांजा, अफीम चरस और अन्य अनेक प्रकार के नशे अत्यधिक मात्रा में प्रचलित हो रहे हैं।
सच तो यह है कि भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग भी किसी न किसी नशे का सेवन करते हैं और बीमारी को गले लगा रहे हैं। जिन परिवारों में दो रोटी के भी लाले हैं, उनके घर का मुखिया भी शराब का लती हो चला है। यह स्थिति बहुत भयावह है। सरकार को नशे से वंचित लोगों को तो नशे के दलदल में फंसने से रोकना ही है लेकिन जो नशे के दलदल में आकंठ धंस चुके हैं, उन्हें उस भयानक दलदल से निकालना भी है और इसका एक ही तरीका है कि नशे के सभी स्वरूपों पर रोक लगा दी जाए। जाहिर है, इससे सरकारी राजस्व का नुकसान होगा लेकिन इससे बीमारियों पर होने वाला खर्च घट जाएगा और वह आबाकारी राजस्व से कहीं अधिक होगा। सरकार को दृढ़ता से इस पर विचार करना होगा कि भारत में जब नशा ही नहीं रहेगा तो नशेड़ी क्या करेगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। नशे पर रोक लगाओ (Stop the addiction) , देश स्वत: नशामुक्त हो जाएगा।