भागलपुर: त्रेतायुग में श्रवण कुमार (Shravan Kumar) को अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ (बहंगी) में बैठाकर तीर्थयात्रा पर निकले हुए देखा था। अब ऐसा ही नजारा कलियुग में देखने को मिला है, चंदन कुमार बन गए है श्रवण कुमार। बिहार के जहानाबाद में घोसी थाना क्षेत्र के केवाली गांव में रहने वाले बुजुर्ग दंपति भगवान शिव के परम भक्त हैं। सावन में वे बाबा वैद्यनाथ के दर्शन करना चाहते है, देवघर तक जा पाना उनके लिए आसान नहीं है। ऐसे में उनके बेटे और बहू ने उनकी इच्छा पूरी करने की ठान ली।
चंदन कुमार और उनकी पत्नी रानी देवी ने एक मजबूत कांवड़ (बहंगी) बनवाया और माता पिता को लेकर भागलपुर पहुंचे। उन्होंने भागलपुर में पवित्र गंगा नदी में स्नान किया और फिर मां-पिता को कांवर में बैठाया। इसके बाद वे भगवान भोलेनाथ का जयकार लगाते हुए देवघर की 105 किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े।
कांवड़ के आगे के हिस्से में चंदन ने पिता को बैठाया है और माता पिछले हिस्से में बैठी हैं। चंदन ने कांवड़ को अपने कंधे पर उठा रखा है जबकि उनकी पत्नी रानी देवी पीछे से सहारा दे रही हैं। चंदन और रानी का बेटा भी उनके साथ है। उन्होंने बताया कि यह यात्रा लंबी और कठिन है इसलिए समय लगेगा लेकिन वे इस यात्रा को जरूर सफल करेंगे। कांवड़ यात्रा के क्रम में दोनों जैसे ही मुंगेर पहुंचे तो आस-पास मौजूद कावड़िए कलियुग के श्रवण भगवान की जय के नारे लगाने लगाने लगे।