नई दिल्ली। झारखंड के डाल्टनगंज से शिल्पी सिन्हा 2012 में बेंगलुरू शिक्षा हासिल करने के लिए आईं थी। इस दौरान उन्हें गाय का शुद्ध दूध लेने के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इसी समस्या से सीख लेते हुए शिल्पी ने यहां दूध का बिजनेस करने का फैसला लिया।
सबसे बड़ी समस्या उनकी भाषा बनकर सामने खड़ी हुई, न तो उन्हें कन्नड़ आती थी और न ही तमिल
कर्नाटक में शिल्पी सिन्हा के महिला और कंपनी की इकलौती फाउंडर के तौर डेयरी क्षेत्र में काम करना आसान न था। सबसे बड़ी समस्या उनकी भाषा बनकर सामने खड़ी हुई। उन्हें न तो कन्नड़ आती थी और न ही तमिल। फिर भी किसानों के पास जाकर शिल्पी ने गाय के चारे से लेकर उसकी देखभाल के लिए समझाया।
शुरूआत में शिल्पी सिन्हा अपनी सुरक्षा के लिए लेकर जाती थीं चाकू और मिर्ची स्प्रे
बता दें कि शिल्पी को शुरूआत में दूध की सप्लाई के लिए कर्मचारी नहीं मिलते थे, तो सुबह तीन बजे खेतों में जाना पड़ता था। इस दौरान शिल्पी अपनी सुरक्षा के लिए चाकू और मिर्ची स्प्रे लेकर जाती थीं। जैसे ही ग्राहकों की संख्या 500 तक पहुंची, शिल्पी ने 11 हजार रुपए की शुरुआती फंडिंग से 6 जनवरी 2018 को द मिल्क इंडिया कंपनी शुरू कर दी। पहले दो साल में ही टर्नओवर एक करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया।
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‘द मिल्क इंडिया कंपनी’ का एक से 9 साल तक के बच्चों पर है फोकस
शिल्पी बताती हैं कि उनकी कंपनी 62 रुपए प्रति लीटर में गाय का शुद्ध कच्चा दूध ही ऑफर करती है। उनके मुताबिक यह दूध पीने से बच्चों की हड्डियां मजबूत होती हैं और यह कैल्शियम बढ़ाने में भी मदद करता है। इसलिए सिर्फ एक से नौ साल तक के बच्चों पर उनका फोकस होता है। इसे गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए कंपनी गायों की दैहिक कोशिकाओं की गणना के लिए मशीन का इस्तेमाल करती है। दैहिक कोशिका जितनी कम होगी, दूध उतना ही स्वस्थ होगा।
बच्चे की उम्र एक साल से कम होने पर कंपनी नहीं करती है दूध की डिलीवरी
शिल्पी ने बताया कि किसी भी ऑर्डर को स्वीकार करने से पहले मां से उनके बच्चे की उम्र के बारे में पूछा जाता है। अगर बच्चा एक साल से कम का है, तो डिलीवरी नहीं दी जाती है। शिल्पी ने बताया कि एक बार उन्होंने देखा कि किसान गायों को चारे की फसल खिलाने की जगह रेस्टोंरेंट से मिलने वाला कचरा खिला रहे हैं। ऐसा दूध कभी भी स्वस्थ नहीं होगा। इसलिए किसानों को पूरी प्रक्रिया समझाई कि कैसे यह दूध उन बच्चों को नुकसान पहुंचाएगा, जो इसे पीते हैं। इसके साथ ही उन्हें मनाने के लिए स्वस्थ दूध के बदले में बेहतर कीमत देने का वादा किया। गायों को अब मक्का खिलाया जाता है।