शरीर पर भस्म लगाए और हाथों में चिलम लिए नागा साधु संसार की मोह-माया को छोड़ निर्वस्त्र होकर महाकुंभ में अपनी धुनी जमाए हुए हैं। हरिद्वार के डामकोठी के पास गंगा किनारे 11 हजार रुद्राक्ष पहने रुद्राक्ष बाबा धूनी रमाए साधना में लीन हैं।
वहीं, बैरागी कैंप में सात किलो मोतियों की मालाएं पहने दयाल दास महाराज कुंभ में आकर्षण का केंद्र हैं। 11 हजार माला पहने रुद्राक्ष बाबा का नाम अजय गिरि महाराज है और वो निरंजनी अखाड़े के नागा संन्यासी हैं जो लोक कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए तप में जुटे हैं। उनका कहना है कि जिस स्थान पर भी कुंभ होता है, वो वहां पहुंचकर गंगा किनारे 11 हजार रुद्राक्ष धारण कर तप करते हैं। उनका तप पूरे अप्रैल तक निरंतर चलता रहेगा।
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महाकुंभ (Mahakumbh) में निर्वाणी अखाड़े के बैरागी संत दयाल दास ने अपने गले मे 103 मालाएं पहने हुए हैं। इन मालाओं का वजन लगभग सात किलो है। संत दयाल दास ने ये मालाएं बाजार से खरीदकर नहीं पहनी है। बल्कि देश के विभिन्न राज्यों के संतों से उन्होंने ये माला आशीर्वाद के रूप में दी हैं।
बाबा बताते हैं कि उनका एक संकल्प है, जो 108 माला पूरी होने पर ही पूरा होगा। 108 मालाएं पूरी हो जाने पर वो एक विशेष यज्ञ करेंगे जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संत शामिल होंगे, उनका एकमात्र यही उद्देश्य है। संत दयाल का कहना है कि अभी उन्हें अपना संकल्प पूरा करने के लिए 5 मालाओं की आवश्यकता है. लेकिन ये मालाएं कब उन्हें मिलेगी। इनके बारे में उन्हें जानकारी नहीं है।