सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों के अपराधीकरण से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। इसके तहत अब सभी राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवारों के एलान के 48 घंटे के भीतर मुकदमों की जानकारी जारी करनी होगी।SC ने निर्देश दिया है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला संबंधित हाईकोर्ट की मंजूरी के बगैर वापस नहीं लिया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से अपील कर कहा कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली पार्टियों के चुनाव चिन्ह को फ्रीज या निलंबित रखा जाए। बता दें कि पीठ बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित न करने के आरोप में फैसला सुना रही थी।
चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये भी कहा कि वह नेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत में एक विशेष बेंच गठित करने पर विचार कर रही है।
इस बेंच, जिसमें जस्टिस विनीत सरन और सूर्यकांत भी शामिल थे, ने आदेश दिया कि विशेष अदालतों के जजों, सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई करने वाले जजों का अगले आदेश तक ट्रांसफर नहीं किया जाएगा।
अदालत ने सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को विशेष अदालतों द्वारा सांसदों के खिलाफ तय किए गए मामलों के बारे में एक विशेष फॉर्मेट में जानकारी देने का निर्देश दिया। इसने ट्रायल कोर्ट के सामने पेंडिंग मामलों और उनके फेज की जानकारी भी मांगी है।
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शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया और बेंच की सहायता कर रही वकील स्नेहा कलिता की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद ये आदेश दिया।बेंच वकील और BJP नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने के अलावा दोषी नेताओं पर चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।