भारत-चीन के तनावपूर्ण रिश्ते की कुछ बर्फ सैन्य वापसी से पिघली तो है लेकिन इसे शांति का स्थायी भाव मानना अभी जल्दीबाजी होगी। अगर यह कहें कि भारत चीन के बीच अभी शांति की बीन ठीक से बज नहीं पा रही है तो कदाचित गलत नहीं होगा। चीन और पाकिस्तान ऐसे देश हैं जिन पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इनकी प्रवृत्ति ‘पल में तोला-पल में मासा’ वाली ही है। दूसरा सच यह भी है कि भारत में भी कुछ लोग नहीं चाहते कि चीन और भारत के बीच अमन-चैन स्थापित हो। कुछ कांग्रेस नेताओं के बयान तो इसी ओर इशारा करते हैं। बाहर के देशों में भी कुछ लोग नहीं चाहते कि भारत और चीन दोस्त बनें। वे दोनों देशों के बीच टकराव की संभावना तलाशते रहते हैं। उकसाने वाली जानकारियां तलाश कर सामने रखते हैं।
एक अमेरिकी एजेंसी ने जानकारी दी है कि लद्दाख में तनातनी के दौरान चीनी हैकरों ने महाराष्ट्र के बिजली संयंत्रों में सेंध लगाकर विद्युत आपूर्ति बाधित कर दी थी। उसकी योजना पूरे भारत में अंधेरे का राज्य स्थापित करने की थी। यह रिपोर्ट सच भी हो सकती है लेकिन इस रिपोर्ट को भारत किस रूप में ले कि उसका हानि-लाभ का संतुलन बना रहे, यह भारत को तय करना है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो अभी भी चीन के मामले में केंद्र सरकार को कायर बता रहे हैं। यह सच है कि पूर्वी लद्दाख के कुछ बिंदुओं से दोनों देशों की सेनाएं अभी हटी नहीं है। इस बीच भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर संघर्ष विराम की सहमति बनी है लेकिन घाटी में घुसपैठ कराने की अपनी आदत से पाकिस्तान आज भी बाज नहीं आया है। उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि चीन और पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते वक्त भारत को अपने आंख और कान खुले रखने होंगे। यह और बात है कि भारत और चीन के बीच चल रही वार्ता पर रूस ने संतोष जाहिर किया है और विश्वास जाहिर किया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के जिम्मेदार सदस्य होने के नाते दोनों देश, तनाव का समाधान शांतिपूर्ण तरीके खोजने में सक्षम होंगे।
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अमेरिका एक ओर तो यह कह रहा है कि चीन को शिकस्त देने के लिए वह भारत से अपनी दोस्ती को प्रगाढ़ करेगा, वहीं उसी का थिंक टेंक फ्रीडम हाउस भारत में आंशिक आजादी की बात कर रहा है और ऐसा करके वह भारत के अंदरूनी मामले में प्रकारान्तर से दखल देता नजर आ रहे है। यह अमेरिका से भारत के प्रति किस तरह की मित्रता है, विचार तो इस पर भी किया जाना चाहिए। चीन और पाकिस्तान विश्वसनीय पड़ोसी नहीं हैं लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका भी बहुत विश्वसनीय नहीं है। इसलिए ‘सुनो सबकी, करो मन की ’ की रीति नीति पर चलना ही भारत के लिए ज्यादा मुनासिब होगा। भारत और अमेरिका के साथ तनाव को देखते हुए चीन ने जिस तरह अपने रक्षा बजट में 6.8 प्रतिशत का इजाफा किया है, उसे बहुत हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। चीन का रक्षा बजट अब आधिकारिक तौर पर 209 अरब डॉलर हो गया है। यह ऐलान ऐसे समय में किया गया है जब दुनिया के तमाम देश कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है, उस विषम कोरोना काल में भी चीन अगर पूर्वी लद्दाख से लेकर साउथ चाइना सी तक अपनी दादागिरी दिखा रहा है तो इसके अपने बड़े निहितार्थ हैं। रक्षा बजट बढ़ाने के पीछे चीन का तर्क यह है कि ऐसा उसने इसलिए किया है कि कोई उसे निशाना न बना सके। आंखें न दिखा सके। निश्चित तौर पर चीन के मुकाबले भारत का रक्षा बजट महज 66 अरब डाॅलर का है। वह भी तब जब भारत ने अपने रक्षा बजट में इस साल 1.48 प्रतिशत की वृद्धि की है। इसमें संदेह नहीं कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति और दुनिया पर राज करने की अपनी चाहत से पीछे नहीं हटना चाहता। यही वजह है कि वह अपने रक्षा बजट को लगातार बढ़ाता जा रहा है। पिछले साल भी चीन ने अपने रक्षा बजट में 6.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी। यह सच है कि चीन अपने सैन्य खर्च का सही-सही आंकड़ा नहीं देता है।
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खबर तो यह भी है कि इनर मंगोलिया प्रांत के जिलंताई शहर के पूर्व में स्थित प्रशिक्षण क्षेत्र में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रॉकेट फोर्स अपने मिसाइल क्रू को ट्रेनिंग देती है। इसमें ट्रक या ट्रेन के ऊपर लगीं मिसाइलें और सपोर्टिंग गाड़ियां शामिल होती हैं। जिलंताई ट्रेनिंग एरिया रेगिस्तानी और पहाड़ी क्षेत्र को मिलाकर कुल 2,090 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसकी इसकी लंबाई लगभग 140 किलोमीटर के आसपास है। चीन ने यहां 2013 के बाद से काफी विकास किया है।,जिसमें 140 लॉन्चिंग पैड्स और दो दर्जन से अधिक कैंप ग्राउंड्स बनाए गए हैं। जहां लॉन्च यूनिट वापस जाने से पहले रहती है। पांच हाई-बे गैरेज सर्विसिंग लॉन्चर और सपोर्टिंग गाड़ियां इस क्षेत्र में ऑपरेट की जाती हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में उत्तर से दक्षिण तक निर्माण काम किया जा रहा है। 16स ाइलो का निर्माण किया जा रहा है। यहां कैंपिंग क्षेत्रों और लॉन्चरों को छिपाने और सुरक्षित रखने के लिए भूमिगत सुविधाओं का बड़ी संख्या में निर्माण हो रहा है। हेंस एम क्रिस्टेंस ने इस क्षेत्र की सैटेलाइट तस्वीरों पर निराशा जताई है। गूगल अर्थ पर तो केवल कुछ क्षेत्रों की और सीमित मात्रा में तस्वीरें ही उपलब्ध हैं। केवल उत्तर पूर्वी इलाके की तस्वीर ही 2019 की है।
यहां की बाकी तस्वीरें तो 2013 और 2014 में ली गई थीं। ऐसे में चीन ने इस क्षेत्र में जो भारी विकास किया है, उसकी जानकारी कम ही लोगों को है। इस हाई रिज्योलूशन तस्वीरों को मैक्सार की सैटेलाइट्स ने खींचा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां जितने भी साइलो का निर्माण किया गया है उनकी लंबाई डीएफ-5 आईसीबीएम की तुलना में छोटी है। इस साइट से डीएफ-41 जैसी मिसाइलों का संचालन किया जा सकता है। यहां 2016 में मिसाइलों को रखने के लिए पहले साइलो का निर्माण किया गया था। बाद में साल 2018-2020 रूसी टाइप के चार अन्य साइलो का निर्माण किया गया। चीन अब 2020 के अंत में अतिरिक्त 11 साइलो का निर्माण कर रहा है, जो अभी पूरे नहीं हुए हैं। ये सभी साइलो 10 गुणे 20 किलोमीटर की एरिया में स्थित हैं, जिनमें एक की दूसरे से दूरी लगभग 2.2-4.4 किलोमीटर के आसपास है। दक्षिण चीन सागर से पूर्वी लद्दाख तक दादागिरी दिखा रहे चीन को घेरने के लिहाज से जल्द ही क्वॉड के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की एक वर्चुअल बैठक होने वाली है। जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिशन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा एक साथ मिलेंगे।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए हिोने वाली इस बैठक से चीन का परेशान होना स्वाभाविक है। क्वाॅड को कूड़े में फेंकने वाला आडिया बताने वाले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस संगठन को अगर इंडो-पैसिफिक नाटो का नाम दिया है तो उसके अपने मतलब हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि अमेरिका इस क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है। जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं। यह पहल क्षेत्रीय सुरक्षा को कमजोर करेगी। इससे चीन की चिंता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि द क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी। हालांकि इसकी शुरुआत वर्ष 2004-2005 में तब हुई थी जब भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में आई सुनामी के बाद मदद का हाथ बढ़ाया था। क्वाड में चार देश अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं।
मार्च में कोरोना वायरस को लेकर भी क्वॉड की मीटिंग हुई थी। इसमें पहली बार न्यूजीलैंड, द. कोरिया और वियतनाम भी शामिल हुए थे। इस समूह के गठन के बाद से ही चीन चिढ़ा हुआ है और लगातार इसका विरोध कर रहा है। भारत को अपने हितों को सर्वोपरि रखना है तो उसे दुनिया भर के देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध रखने होंगे। बिना इसके बात बनने वाली नहीं है। उसे अमेरिका को भी साधे रखना है और चीन को भी लेकिन इस बात का भी ख्याल रखना है कि कोई उसे ब्लैकमेल न कर सके और यह तभी संभव है जब भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो और ऐसा करने के लिए यहां के हर नागरिक को अपनी सरकार का साथ देना होगा। चीन को भी समझना होगा कि भारत 1962 का हिंदुस्तान नहीं है। अब वह तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। भारत बहुत बड़ा बाजार है। उससे वैमनस्य की कीमत चीन आज भी चुका रहा है। चीन अगर भारत के साथ मिलकर चलता, उसकी जमीन पर कुदृष्टि नहीं रखता तो उसकी अर्थव्यवस्था कहां होती, इसका पता उसे भी है। इसलिए अभी भी समय है जब चीन को अपनी विस्तारवादी सोच से बाज आना चाहिए और एक सहृदय पड़ोसी का धर्म निभाना चाहिए। यही वक्त का तकाजा भी है।