रेड लाइट एरिया और उन तंग गलियों के पीछे की दर्द और बेबसी की काली सच्चाई ?

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औरत के नाम पर वो बदनाम थी ,

औरत होने के कारण ही सबने , 

उसका दरवाजा खटखटाया !”

 

ये तीन लाइनें ही समाज के इस विकृत मानसिकता और दोगलेपन भरे चेहरा को उजागर करने के लिए काफी है। ऐसे वहशी और अनियंत्रित कामुकता से भरे लोगो के कारण ही लाखों महिलाएं ऐसी हिकारत और यातनामय जीवन जीने को बाध्य हैं। इस तरह के जबरदस्ती भरे कुकर्मों से न केवल महिलाओं के शरीर पर असर पड़ रहा बल्कि उनकी आत्मा भी छलनी हो रही, आत्मग्लानी और समाज से अलगाव की भावनाएं उन्हे समाज की मुख्यधारा में आने के बीच रोड़े अटकाने का काम कर रही।

 

वेश्यावृत्ति का भी पूरी दुनिया में चरम उभार हो चुका है। पोस्ट मॉडर्न सोसाइटी में वेश्यावृत्ति के अलग-अलग रूप भी सामने आए हैं। रेड लाइट इलाकों से निकल कर वेश्यावृत्ति अब मसाज पार्लरों एवं एस्कार्ट सर्विस के रूप में भी फल-फूल रही है। देह का धंधा कमाई का चोखा जरिया बन चुका है। गरीब और विकासशील देशों जैसे भारत, थाइलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि में सेक्स पर्यटन का चलन शुरू हो चुका है। जिस्मफरोशी दुनिया के पुराने धंधों में से एक है। गुलाम व्यवस्था में गुलामों के मालिक वेश्याएं रखते थे।

 

मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। राजाओं ने अंग्रेजों को खुश करने के लिए तवायफों को तोहफे के रूप में पेश करना शुरू किया। पुराने वक्त के कोठों से निकल कर देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी के मामले में पिछड़ी पुलिस के लिए इस नेटवर्क को भेदना खासा कठिन है।

 

सिर्फ नेट पर अपनी जरूरत लिखकर सर्च करने से ऐसी दर्जनों साइट्स के लिंक मिल जाएंगे जहां हाईप्रोफाइल वेश्याओं के फोटो, फोन नंबर और रेट तक लिखे होते हैं। इन पर कालेज छात्राएं, मॉडल्स और टीवी-फिल्मों की नायिकाएं तक उपलब्ध कराने के दावे किए जाते हैं।

 

राजधानी दिल्ली में जी.बी रोड, नई दिल्ली यानी गारस्टिन बास्टिन रोड सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। सन् 1965 में इसका नाम बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया। मुगलकाल में इस क्षेत्र में कुल पांच रेडलाइट एरिया यानी कोठे हुआ करते थे। अंग्रेजों के समय इन पांचों क्षेत्रों को एक साथ कर दिया गया और उसी समय इसका नाम जीबी रोड पड़ा। यहां देहव्यापार का सबसे बड़ा कारोबार होता है। नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके यहां को कोठों पर लाया जाता है। वर्तमान में एक ही कमरे में कई केबिन बनें हैं, जहां एक साथ कई ग्राहकों को सेवा दी जाती है। यहां समय-समय पर दिल्ली पुलिस छापा मारती रहती है।

 

मायानगरी मुंबई का कामथीपुरा रेडलाइट एरिया पूरी दुनिया में चर्चित है। यह एशिया का सबसे बड़ा और पुराना रेडलाइट एरिया है। सन 1795 में पुराने बांबे के इस इलाके में निर्माण क्षेत्र में काम करने वाली आंध्रा महिलाओं ने देह व्यापार का धंधा शुरू किया था। 1880 में यह क्षेत्र अंग्रेजों के लिए ऐशगाह बन गया। आज भी देहव्यापार के लिए इस क्षेत्र खूब जाना जाता है। यहां 2 लाख सेक्स वर्कर का परिवार रहता है, जो पूरे मध्य एशिया में सबसे बड़ा है। बताते चलें कि भारत में इन इलाकों के अलावा वाराणसी में दालमंडी, सहारपुर (यूपी) में नक्कास बाजार, मुजफ्फरपुर (बिहार) में चतुर्भुज स्‍थान, बुधवार पेठ, पुणे , मेरठ (यूपी) में कबाड़ी बाजार और नागपुर में गंगा-यमुना हैं।

 

देश में रोजाना 2000 लाख रूपये का देह व्यापार होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं। वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है। मुम्बई और ठाणे के वेश्यावृत्ति के अड्डों से तो रूस और मध्य एशियाई देशों की युवतियों को पकड़ा गया है। भारत में वेश्यावृत्ति के बाजार को देखते हुए अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं।

 

ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकात्ता से सटा दक्षिण 24 – परगना ज़िले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिंन्दगी नहीं है। इस पूरे गांव की अर्थव्यवस्था इसी धंधे पर टिकी है।

 

हालांकि सामाजिक तौर पर ऐसी बुराइयों का विरोध होता है लेकिन इनमें अपने ही समाज के ऐसे दोहरे चरित्र लोग जो खुद को सम्मानित बताते है और खुद की घर की महिलाओं को पर्दे में रखते है समाज में ऐसी चीजों की खुलकर बुराई भी करते लेकिन खुद इनका वहां आना जाना और उन लड़कियों के साथ हमबिस्तर होने में कोई बुराई नही लगती , तथा जब बात अपनी घर की लड़कियों की आते ही उन्हें सारी मान मर्यादाओं चरित्र का खयाल आना शुरु हो जाता है।

 

एक तरफ समाज में जाति, धर्म, ऊंच, नीच जैसी असमानताओं के कारण लड़के लड़कियों के अपने मन मर्जी शादी करने पर ये लोग ऑनर किलिंग, उनका हुक्का पानी बंद करवाना, गांव निकाला जैसे दण्ड दिए जाते है जो राजस्थान, हरियाढ़ा, यूपी जैसे राज्यों में ऐसी घटनाओं की भरमार है।

दूसरी तरफ के ऐसी समाज के मर्द उन औरतों के साथ हमबिस्तर होने में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं दिखती।

 

हरियाणा जैसे राज्यों में तो मोल की बहु जैसी सामाजिक कुरीतियां भी विद्यमान हैं। जिन्हे सिर्फ बच्चा पैदा करने और घर का सारा काम करने के लिए पशुवत जीवन जीने को मजबूर किया जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी असामाजिक परम्परा पर रोक लगा दी है लेकिन जब तक किसी कानून की सामाजिक स्वीकार्यता न हो, ऐसे कानून सिर्फ कागजों पर ही विद्यमान रहते।

 

सरकार और कई एनजीओ ने ऐसी महिलाओं के लिए काफी काम किया है जैसे उनसे हुए अवैध बच्चो की देखभाल , उनकी पढ़ाई और उनके लिए अलग आवासीय सुविधा जैसे की कदम ।

हमे ऐसी लड़कियों को विश्वास में लेने की जरूरत है जिन्हे लगता है की उनका अब ऐसे काले कारोबारों से बाहर आना संभव नहीं , उन्हें कुछ काम जैसे सिलाई, कड़ाई जैसे कामों और ऐसे काम जिन्हे वो कर सके और अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पा सके , सिखाना चाहिए ।

 

ऐसे असामाजिक धंधे भी अर्थव्यस्था के नियम से ही चलते है जो है “डिमांड और सप्लाई का नियम” , अगर हम ऐसी चीजों की मांग ना करे तो ये धंधे खुद ब खुद बंद हो जाएंगे । अगर हम समाज में ऐसे लोगो का काला चिट्ठा खोल कर , समय समय पर पुलिस छापेमारी करके, जनजागरूकता लाकर लोगो को ऐसे कामों को करने में हतोत्साहित कर सके तो हम इन लड़कियों को इस नर्क से निकाल कर , एक सुनहरे भविष्य की ओर ला सकते है ।

 

तो जिम्मेदारी दोनो तरफ की है कि एक तरफ हमे उनके साथ खड़े होकर उनका हौसला अफजाई करें , दूसरी तरफ ऐसे लोगो को हतोत्साहित करें जिनकी कामुखता खुद के बस में नहीं ।

हर उस को कोठों पर दर्द और नरकीय जीवन की इतनी कहानियां कैद है की उसे बयां करना संभव नहीं । जरा सोचिएगा उन लड़कियों के बारे में जो रोज इस नर्क भरी जिंदगी को जी रही , उन्हें जानवरो को तरह बांध कर , छोटे छोटे कमरों में कैद करके रखा जाता है , ना परिवार ना कोई अपना , सिर्फ जानवरो की तरह सुलूक और उन्हें मारा पीटा जाना तो बहुत ही साधारण घटना वहां की, इन अमानवीय कृत्य से उनका शरीर तो कुछ समय बाद सही हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा को ये एकदम छलनी कर देता है और उन्हें मजबूर कर देता है संपूर्ण जीवन उसी कुक्रत्यो से भरी तंग गलियों में जीने को।

 

चंद पंक्तियां जो दोगले समाज को सारगर्भित करती हैं:-

“भूखे तो दोनों थे,

बस एक मजबूर था।

एक शौखीन था।।

बिके तो दोनों थे,

एक पेट के लिए।

दूसरा जिस्म के लिए।।”

 

हमारे संविधान ने सबको अधिकार दिया है गरिमापूर्ण , सम्मान पूर्वक जीवन जीने का, ऐसे कुक्रत्यों से संविधान प्रदत्त मूलभूत अधिकारों के जीवन के अधिकार (अनु. 21) का उल्लंघन है। जिसकी प्राथमिक जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है अनु. 32 के तहत। जबकि ऐसे कार्य राजधानी दिल्ली के कुछ किलोमीटर दूरी पर ही होता रहा है।

 

तो ऐसे कार्य की इजाजत न हमारा संविधान देता है, ना कानून, ना मानवीयता, और न हमारी संवेदनाशीलता, न ही मर्दानगी, और न ही हमारा पुरुषत्व।

जरूरत है संवेदनशील होने की , ऐसे लोगो के जीवन में फिर से रोशनी लाने की , कारण कोई भी हो , कोई वहां अपने मन से आया हो या जबरदस्ती लाया गया हो, आखिर नर्क तो नर्क ही होता है।

 

 

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