सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण (Privatization) के खिलाफ दो दिवसीय हड़ताल का मुद्दा मंगलवार को संसद में गूंजा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे को उठाते हुए समस्या के समाधान के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बयान देने की मांग की।
उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए खड़गे ने कहा कि कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने से बैंकों का कामकाज ठप्प पड़ गया है और आम जनता से लेकर कोराबारी तक इससे परेशान हैं।
उन्होंने कहा, ‘देश भर में लगभग 12 राष्ट्रीयकृत बैंक हैं और इनकी एक लाख शाखाएं हैं। इनमें करीब 13 लाख लोग काम करते हैं और 75 करोड़ से ज्यादा खातेदार हैं। ये खातेदार भी बैंक के हितधारक हैं और उनके पूछे बगैर सरकार ने निजीकरण का फैसला कर लिया।’
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की ‘गलत नीतियों और अंधाधुंध निजीकरण’ के चलते आज यह स्थिति पैदा हुई है और उनक रोजी-रोटी पर भी संकट उत्पन्न हो गया है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता खड़गे ने कहा कि वर्ष 2008 में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट आया था तब राष्ट्रीयकृत बैंकों के कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था संभली थी।
उन्होंने कहा, ‘आज बैक कर्मचारी रास्तों पर बैठे हैं। हड़ताल कर रहे हैं। उनकी समस्या को सुलझाने के लिए वित्त मंत्री को यहां बयान देना चाहिए।’
ज्ञात हो कि नौ यूनियनों के संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने 15 और 16 मार्च को हड़ताल का आह्वान किया है। ये नौ बैंक यूनियनें हैं…एआईबीईए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने पेश आम बजट में सरकार की विनिवेश योजना के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण (Privatization) की घोषणा की थी।