भारतीय उद्योग परिसंघ की सालाना बैठक को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी कंपनियों को प्राइवेट किए जाने की पुष्टि की है। प्राइवेटाइजेशन कार्यक्रम को लेकर वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना चाहती है, इसलिए PSU के लिए एक नीति भी लेकरआई है। DIPAM के सेक्रेटरी तुहिन कांत पांडे ने प्राइवेट की जाने वाली कंपनियों के नाम बताए, जिसमें भारत पेट्रोलियम, कॉनकोर, एयर इंडिया का नाम शामिल था।
जबकि Shipping Corporation of India, Bharat Earth Movers Private Ltd., Pawan Hans और Neelachal Ispat Nigam Ltd के प्राइवेटाइजेशन को लेकर बिडर्स ने दिलचस्पी दिखाई है। सरकार ने इस साल के बजट में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है, इसमें दो सरकारी बैंक और LIC में हिस्सेदारी बेचना शामिल है।
हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इसे लिस्टेड कंपनी बनाया जाएगा, किसी विदेशी कंपनी के हाथों दिया जाएगा या देश की कोई कंपनी इसका जिम्मा संभालेगी. इस साल बजट में सरकार ने ऐलान किया था कि दो सरकारी बैंक और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करेंगे। इस हिसाब से माना जा रहा है कि पहले चरण में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण हो सकता है। CNBC Awaaz की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार बहुत जल्द यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण कर सकती है और इसकी तैयारी शुरू हो गई है।
खबर में कहा गया है कि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस एक अनलिस्टेड और जनरल इंश्योरेंस कंपनी है जिसके निजीकरण को लेकर वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के बीच सहमति बनी है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अगुवाई में जो कमेटी बनी थी, उसने यूनाइटेड इंडिया के निजीकरण के लिए सिफारिश की है। इस सिफारिश पर वित्त मंत्रालय गौर फरमा रहा है. नीति आयोग ने बीमा क्षेत्र की कई कंपनियों की समीक्षा की और पाया कि यूनाइटेड इंडिया का निजीकरण किया जाए तो यह कंपनी भविष्य में बेहतर हालत में होगी।
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अभी यह पता नहीं चल पाया है कि कोई देसी कंपनी यूनाइटेड इंडिया को खऱीदेगी या कोई विदेशी कंपनी इस काम में आगे आएगी। इस बार एफडीआई में इंश्योरेंस सेंक्टर में बदलाव हुए हैं। लेकिन उसके बाद भी सरकार ने कई कड़े प्रावधान रखे हैं। ऐसी स्थिति में देखना होगा कि कोई देसी कंपनी यूनाइटेड इंडिया को अपने हाथ में लेती है या कोई विदेशी कंपनी. पहले ऐसा नियम था कि अनलिस्टेड कंपनी को पहले लिस्ट करना होता है, उसके बाद ही प्राइवेटाइज करते है। अब ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। हालांकि इस काम में अभी वक्त लगेगा क्योंकि कई प्रक्रियाओं के गुजरने के बाद इस फैसले को कैबिनेट से मंजूरी लेनी होगी।