महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू, रामनाथ कोविंद ने भी लगाई मुहर

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नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की कैबिनेट की सिफारिश पर हस्ताक्षर कर दिया है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है।

बता दें कि राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति शासन की भेजी गई सिफारिश पर अपनी मुहर लगा दी है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर से बरकरार राजनीतिक अनिश्चितता का फिलहाल पटाक्षेप हो गया है।

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार को ही प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी। बता दें कि राज्यपाल ने राज्य की सभी पार्टियों को बारी-बारी से सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन राज्यपाल को कोई भी दल ने संतुष्ट नहीं कर पाया। इसके साथ ही महाराष्ट्र के इतिहास में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। इससे पहले राज्य में अब तक सिर्फ 2 बार ही राष्ट्रपति शासन लगा था।

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महाराष्ट्र में पहले भी दो बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन 

प्रदेश में सबसे पहले 17 फरवरी 1980 को और 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार को विधानसभा में पर्याप्त बहुमत होने के बावजूद सदन भंग कर दिया गया था। प्रदेश में 17 फरवरी से 8 जून 1980 तक अर्थात 112 दिन तक राष्ट्रपति शासन लगा था। दूसरी बार प्रदेश में 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस वक्त प्रदेश की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित अन्य दलों के साथ अलग हुआ था और विधानसभा को भंग किया गया था। दूसरी बार प्रदेश में 28 सितंबर 2014 से लेकर 30 अक्टूबर यानी 32 दिनों तक राष्ट्रपति शासन रहा था।

जानें राष्ट्रपति शासन के दौरान क्या-क्या हो जाते हैं परिवर्तन?

राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रि परिषद को भंग कर देता है।राष्ट्रपति, राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जातीं हैं।

राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त -किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है। यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गई घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी।
संसद, राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है। संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति, राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है। जब संसद नहीं चल रही हो तो राष्ट्रपति, ‘अनुच्छेद 356 शासित राज्य’ के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है।

राष्ट्रपति को सम्बंधित प्रदेश के हाई कोर्ट की शक्तियां प्राप्त नहीं होती हैं और वह उनसे सम्बंधित प्रावधानों को निलंबित नहीं कर सकता है। राष्ट्रपति अथवा संसद अथवा किसी अन्य विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून, राष्ट्रपति शासन के हटने के बाद भी प्रभाव में रहेगा, परन्तु इसे राज्य विधायिका द्वारा संशोधित या पुनः लागू किया जा सकता है।

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