उत्तर प्रदेश में पिछले कई दिनों से मरीजों की संख्या लागातार बढ़ रही है। 24 घंटे में मरीजों की संख्या हजार पार कर रही है। उधर रिकवरी रेट भी घट रहा है। ऐसे में सरकार ने वायरस से निपटने के लिए प्लान तैयार कर लिया है। इसमें वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के साथ बंद कोविड अस्पतालों को भी अलर्ट मोड पर रखा है।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी के मुताबिक कई राज्यों में वायरस बढ़ गया है। वहीं यूपी में भी मरीजों की तादाद में इजाफा हो रहा है। अभी हर जनपद में एक-एक कोविड अस्पताल चल रहा है। यह करीब 100-100 बेड के अस्पताल हैं। वहीं शेष सभी अस्पताल में सामान्य चिकित्सकीय सेवाएं चल रहीं हैं। मगर, अब बढ़ते कोरोना के केसों को लेकर बंद हुए सभी कोविड अस्पताल को अलर्ट कर दिया गया है। इन्हें आदेश मिलते ही सप्ताह भर में कोरोना मरीजों का इलाज शुरू करना होगा।
अस्पतालों में डेढ़ लाख बेड की होगी क्षमता
प्रदेश भर के कोविड अस्पतालों में डेढ़ लाख बेडों की क्षमता हो जाएगी। वहीं 17, 200 के करीब आईसीयू बेड रिजर्व होंगे। ऐसे में मरीजों के इलाज में कोई समस्या नहीं होगी। राजधानी में केजीएमयू, लोहिया व पीजीआई तीन सरकारी के लेवल-थ्री के अस्पताल हैं। इनमें कोविड बेड बढ़ाए जा रहे हैं। आरएसएम, लोकबन्धु अस्पताल फिर से कोविड अस्पताल बन रहे हैं। राज्य में सबसे अधिक मरीज लखनऊ में ही आ रहे हैं। ऐसे में यहां निजी अस्पतालों को भी कोविड अस्पताल बनाया जा रहा है।
एक अप्रैल से 45 पार उम्र के सभी को टीका
वायरस पर नियंत्रण के लिए कोरोना वैक्सीनेशन पर जोर दिया जा रहा है। अब तक 54 लाख के करीब डोज लगाई जा चुकी है। हेल्थ वर्कर, फ्रंटलाइन वर्कर, 60 वर्ष से ऊपर व 45 वर्ष से ऊपर बीमार व्यक्तियों का वैक्सीनेशन हुआ। वहीं एक अप्रैल से 45 साल से अधिक सभी को कोविड वैक्सीन लगेगी. यह वायरस की चेन ब्रेक करने में मददगार बनेगा।
आरटी-पीसीआर टेस्ट पर दिया जाएगा जोर
125 सरकारी व 104 निजी कोविड लैब संचालित हैं। वायरस कम होने पर कोविड टेस्ट की संख्या भी घट गई थी। अब फिर से स्क्रीनिंग, टेस्टिंग पर सरकार ने जोर देने को कहा है। इसमें 70 फीसद तक आर-टीपीसीआर टेस्ट के निर्देश दिए हैं ताकि व्यक्ति में संक्रमण को शुरुआती दौर में ही पकड़ा जा सके।
गत वर्ष अप्रैल से बढ़ी थी मरीजों की संख्या
पिछले साल 2020 में मार्च के महीने में ही कोरोना(Corona) ने यूपी में दस्तक दी थी। 3 मार्च 2020 को कोरोना का पहला मामला गाजियाबाद में पाया गया था। 11 मार्च को राजधानी में कनाडा से लौटी महिला डॉक्टर में पहली बार वायरस की पुष्टि हुई थी। इसके बाद अप्रैल में वायरस बढ़ना शुरू हुआ और सितंबर में चरम पर रहा।