लखनऊ: करीब 6000 साल पुराना। भगवान गौतम बुद्ध का प्रसाद। सुंगध, स्वाद और पौष्टिकता में बेजोड़ होने की वजह से प्रदेश के एक जिला,एक उत्पाद (ODOP) में शामिल सिद्धार्थनगर (Siddharthnagar) के कालानमक चावल के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर ओडीओपी में शामिल करने के बाद कालानमक को लोकप्रिय बनाने और इसे बासमती की तरह ब्रांड बनाने के लिए शासन के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन ने जो काम किए हैं उसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहां के निवर्तमान जिलाधिकारी दीपक मीना को सम्मानित करेंगे।
इस बाबत 21 अप्रैल को दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्मान समारोह आयोजित है। भारत सरकार के कार्मिक, लोकशिकायत तथा पेंशन मंत्रालय, प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग के सचिव वी श्रीनिवास ने इस बाबत उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव को इस बाबत 16 अप्रैल को सूचना दी है।
मालूम हो कि कालानमक की खूबियों के नाते ही प्रदेश सरकार ने 2018 में इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित किया। बाद में करीब साल भर पहले इन्हीं खूबियों के नाते केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसे 5 जिलों (सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, संतकबीरनगर और देवरिया) का ओडीओपी घोषित किया।
प्रदेश सरकार ने जबसे कालानमक को सिद्धार्थगर का ओडीओपी घोषित किया है तबसे इसे देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाने और बासमती की तरह इंटरनेशनल ब्रांड बनाने के लिए प्रयास कर रही है। इस बाबत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल सिद्धार्थनगर जाकर किसानों और स्थानीय प्रशासन के साथ बैठकें कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री की पहल पर साल भर पहले कपिलवस्तु महोत्सव के दौरान कालनमक महोत्सव का आयोजन भी हो चुका है।देश दुनिया के लोग भगवान बुद्ध के इस प्रसाद की खूबियों से वाकिफ हो इसके लिए किसी आयोजन या पर्व पर देश-विदेश के अतिथियों को दिये जाने वाले गिफ्ट हैंपर में आम तौर पर कालानमक भी होता है। कालानमक से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स की सुविधा के लिए सिद्धार्थनगर में कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) बनकर तैयार है।
कृषि वैज्ञानिक आरसी चौधरी के मुताबिक अब तक चावल के लिए कालानमक धान की कुटाई परंपरागत पुरानी मशीनों से होता था। अधिक टूट निकलने से दाने एक रूप नहीं होते थे। भंडारण एवं पैकेजिंग एक बड़ी समस्या थी। सीएफसी में हर चीज की अलग व्यवस्था होगी। पहले धान को डीस्टोनर मशीन से गुजारा जाएगा। इससे इसमें कंकड़-पत्थर अलग हो जाएंगे।
धान से भूसी अलग करने और पॉलिशिंग की मशीनें अलग-अलग होंगी। असमान दानों के लिए शॉर्टेक्स मशीन होगी। उत्पादक की मांग के अनुसार पैकिंग की भी व्यवस्था होगी। धान के भंडारण के लिए सामान्य और तैयार चावल को लंबे समय तक इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होगी। इस तरह से यहां से निकलने वाला चावल अपनी सभी खूबियों के साथ पूरी तरह शुद्ध होगा।
अभी और बढ़ेगा कालानमक का जलवा
प्रधानमंत्री से मिले सम्मान के साथ और भी कई वजहें हैं जिनसे आने वाले समय में कालानमक का जलवा और बढ़ेगा। जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) और सरयू नहर इसमें मददगार होंगे। उल्लेखनीय है कि कालानमक धान को पूर्वांचल के 11 जिलों ( गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा)के लिए जीआई) प्राप्त है। मसलन इन जिलों की एग्रो क्लाइमेट (कृषि जलवायु) एक जैसी है।
लिहाजा इस पूरे क्षेत्र में पैदा होने वाले कालानमक की खूबियां समान होंगी। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग के आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: इमरजेंसी के समय में लोकतंत्र का गला घोटने का प्रयास हुआ: सीएम योगी
कालानमक की इन संभावनाओं को सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना ने और बढ़ा दिया। अन्य फसलों की तुलना में धान की फसल को पानी की अधिक जरूरत होती है। संयोग से चार दशक बाद कुछ महीने पहले पूरी होने वाली सरयू नहर से सिंचित होने वाले जिले बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर और महराजगंज वही हैं जिनको कालानमक के लिए जीआई मिली है। इससे इसकी संभावनाएं और बढ़ जाती हैं।