पेगासस जासूसी मामले में पांच पत्रकारों (परंजॉय गुहा ठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और ईप्सा शताक्षी) ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। पत्रकारों का कहना है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा निगरानी के अनधिकृत उपयोग ने उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह पेगासस के उपयोग से संबंधित जांच में तमाम खुलासों के लिए केंद्र को निर्देश जारी करें।
उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें सरकार या किसी अन्य तीसरे पक्ष द्वारा गहन घुसपैठ और हैकिंग के अधीन किया गया था। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना और सूर्यकांत की पीठ पेगासस जासूसी कांड से जुड़े मामलों की सुनवाई 5 अगस्त को करेगी।
याचिका में दावा किया गया है कि हैकिंग एक अपराध है जो अन्य बातों के साथ-साथ आईटी एक्ट की धारा 66 (कंप्यूटर से संबंधित अपराध), 66 बी (बेईमानी से चुराए गए कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण प्राप्त करने की सजा), 66 ई (गोपनीयता के उल्लंघन के लिए सजा) और 66 एफ (साइबर आतंकवाद के लिए सजा) के तहत दंडनीय है। इससे पहले अधिवक्ता एमएल शर्मा और राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने भी जासूसी के आरोपों की जांच के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था।
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सिब्बल की दलीलों के बाद पीठ ने कहा कि वह अगले सप्ताह मामले की सुनवाई कर सकती है। पत्रकारों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि एक सैन्य-ग्रेड स्पाइवेयर का उपयोग करके बड़े पैमाने पर निगरानी कई मौलिक अधिकारों का हनन करती है और स्वतंत्र संस्थानों में घुसपैठ, हमला और अस्थिर करने के प्रयास का प्रतिनिधित्व करती है, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।