ब्राह्मण जाति के कुलगुरु परशुराम ने 21 बार किया पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन

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भगवान विष्णु के छठे अवतार एवं ब्राह्मण जाति के कुल गुरु परशुराम (Parashuram ) की जयंती वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन मनाई जाती है। भगवान परशुराम (Parashuram ) विष्णु के ऐसे अवतार हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह चिरंजीवी हैं और हनुमानजी, अश्वत्थामा की तरह सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं।

भगवान परशुराम (Parashuram ) के जन्म की कहानी

भगवान परशुराम (Parashuram ) के जन्‍म की कहानी बेहद विचित्र है। यह ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। ब्राह्मण होते हुए भी इनमें क्षत्रियों के गुण आ गए थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, प्राचीन काल में कन्‍नौज के राजा गाधि की पुत्री सत्‍यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र से हुआ था। संतान की कामना से सत्यवती अपने ससुर भृगु ऋषि से आशीर्वाद लेने गईं। सत्यवती की मां को भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने ऋषि भृगु से माता के लिए संतान का आशीर्वाद मांगा।

फिर भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो फल दिए और बताया कि स्नान करने के बाद सत्यवती और उनकी माता को पुत्र की इच्छा लेकर पीपल और गूलर के पेड़ का आलिंगन करना है। फिर इन फलों का सेवन करना है। लेकिन सत्‍यवती की मां के मन में लालच आ गया और फिर उन्‍होंने दोनों फलों की अदला-बदली कर दी। सत्‍यवती का फल उन्‍होंने खुद खा लिया और बेटी को अपना वाला फल दे दिया।

जब इस बात की भनक भृगु ऋषि को लगी तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि, अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा। इससे परेशान होकर सत्यवती ने कहा कि ऐसा ना हो। भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो जाए। कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। युवा होने पर महर्षि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ। इस तरह परशुराम का जन्म हुआ, जो जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे।

21 बार किया पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन

कहा जाता है कि भगवान परशुराम न्‍याय के देवता हैं और उन्‍होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए ऐसा किया था। दरअसल, हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन अपने बल और घमंड के कारण लगातार ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार करते रहते थे। प्राचीन कथा के अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना सहित भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि मुनि के आश्रम में पहुंचा। जमदग्नि मुनि ने सेना का स्वागत और खान पान की व्यवस्था अपने आश्रम में की।

मुनि ने सभी सैनिकों की भूख को आश्रम की चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से शांत किया था। सहस्त्रार्जुन कामधेनु गाय के चमत्कार से प्रभावित हुआ और फिर उसने मुनि जमदग्नि से बलपूर्वक कामधेनु गाय को छीन लिया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया। फिर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया और पिता के वियोग में भगवान परशुराम की माता चिता पर सती हो गयीं। परशुराम जी ने पिता के शरीर पर 21 घाव को देखकर यह प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे। इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

भगवान गणेश भी हुए परशुराम जी के क्रोध का शिकार

भगवान परशुराम को क्रोध अत्यधिक आता था। उनते क्रोध से स्वयं गणपति महाराज भी नहीं बच पाए थे। दरअसल एकबार जब भगवान परशुराम जी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पहुंचे, तो उस दौरान गणेश जी ने उन्हें रोक दिया और भगवान शिव मिलने की अनुमति नहीं दी। इस बात से परशुराम जी बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेश जी को युद्ध के लिए चुनौती दे डाली। गणेश जी ने भी परशुरामजी की यह चुनौती स्वीकार कर ली। फिर दोनों में घोर युद्ध हुआ। इसी युद्ध में परशुराम के फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दांत खंडित हो गया था। तभी से वे एकदंत कहलाए।

जब श्रीराम से मिले परशुराम (Parashuram )

भगवान राम और परशुराम की मुलाकात सीता स्वयंवर के दौरान हुई थी। दरअसल श्री राम ने स्वयंवर में शिव के धनुष को तोड़ दिया था जिसके बाद भगवान परशुराम क्रोधित होकर भगवान राम से वध करने आ गए थे। लेकिन जब भगवान विष्णु के शारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो परशुरामजी ने भगवान राम की वास्तविकता को जान लिया और आशीर्वाद देकर चले गए।

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