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बढ़ती घटनाओं से इंसान ही नहीं, वन्य जीव तक परेशान

बढ़ती घटनाओं से इंसान ही नहीं, वन्य जीव तक परेशान

बढ़ती घटनाओं से इंसान ही नहीं, वन्य जीव तक परेशान

मौसम बदल रहा है। मार्च में ही मई—जून जैसी गर्मी पड़ रही है।अगलगी की बढ़ती घटनाओं से इंसान ही नहीं, वन्य जीव तक परेशान हैं। इस साल जंगलों में आग लगने की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। देश के कई जंगलों और पहाड़ों में आग लगी है जिससे वेशकीमती पेड़—पौधे और दुर्लभ वनस्पतियां जल कर राख हो रही हैं। वनों में लगी आग से देश में हर साल 550 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यह और बात है कि जंगल की आग से निपटने के लिए सरकार के स्तर जारी फंड का 45 से 65 प्रतिशत तक ही इस्तेमाल हो पाता है। वनों में आग लगने की घटना पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। हर साल दुनिया भर में 6 लाख 70 हजार किमी. जंगल  आग की भेंट चढ़ जाता है जो कि विश्व के कुल जंगल जमीन का 2 प्रतिशत भाग है।

हाल के दिनों में  चित्रकूट जिले के जंगलों में लगी आग 5 किलोमीटर क्षेत्र तक पहुंच गई है। देवांगना घाटी की हवाई पट्टी से सटे जंगल में आग की लपटें लोगों को डरा रही हैं। बरगढ़ क्षेत्र के बबुरी ग्राम पंचायत के पाठन बाबा के जंगल और मऊ क्षेत्र के खंडेहा के दानू आश्रम के जंगल के पांच किमी के क्षेत्र को आग ने  अपने आगोश में ले लिया है। देवांगना घाटी के पास लगी आग प्राचीन बांके सिद्ध आश्रम के पास तक पहुंच गई है। आग से लाखों रुपये की वन संपदा भी जल गई है। ढाई साल पहले भी देवांगना घाटी के जंगलों में भीषण आग  लगी थी जिसे सेना के हेलीकाप्टर
की मदद से बुझाया  जा सका था।  चित्रकूट के रानीपुर वन्य जीव बिहार के कई पहाड़ और जंगल जल रहे हैं।  चवरी, बेधक, रोझौहा, देवरी, कल्याणपुर, रानीपुर,करलिया, सेहवा, गिदुरहा आदि  क्षेत्रों में सागौन, साखू, विजहरा, सेंध, चार, बेल और तेंदु के पेड़ ही नहीं, दुर्लभ जड़ी—बूटियां भी जलकर नष्ट हो रही हैं।

  फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में

देश में 277779 ऐसे वन क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं जहां अक्सर आग लगती है। अकेले मिजोरम में सर्वाधिक 32659 वनक्षेत्रों में प्राय: आग लगती है। रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2021 तक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में नवंबर से जनवरी तक जंगल में आग लगने की 2984 घटनाएं  हो चुकी हैं जिनमें सर्वाधिक 470 उत्तराखंड में दर्ज की गई हैं। उत्तराखंड में पिछली सर्दियों में नवंबर से जनवरी  तक जंगल में आग की 39 घटनाएं हुई थीं। तब अरुणाचल प्रदेश में सर्वाधिक 111 स्थानों पर जंगल जले थे जबकि असम में 71, नागालैंड में 38 और मणिपुर में 31 घटनाएं दर्ज की गईं थीं। कुमाऊं मंडल में बीते चार माह में जंगल में आग लगने की 276 घटनाएं  हो चुकी हैं। इससे 396 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए और 2603 लोग प्रभावित हुए। गढ़वाल मंडल में गत चार माह में जंगल में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें 501 हेक्टेयर वन जला है। इस आग में 6350 पेड़ जले हैं। 4 जनवरी,2021 को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार  से जंगल की आग रोकने के लेकर किए गए प्रबंधों की जानकारी मांगी है।

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गौरतलब है कि इसी मार्च माह में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद  के मड़िहान तहसील क्षेत्र के पटेहरा जंगल में भड़की आग देखते ही देखते 15 किलोमीटर क्षेत्र का इलाका चपेट में आ गया। चार जनपदों से फायर ब्रिगेड  बुलानी पड़ी। फरवरी,2021 को इटावा जिले में राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के जंगल में हाल ही लगी भीषण आग से दो हेक्टेयर भूमि पर खड़े सैकड़ों वृक्ष जलकर राख  हो गए। 24 मार्च 2021 को कालपी  क्षेत्र के छौंक के जंगल में अचानक भीषण आग लगने से सैकड़ों पेड़ जलकर राख हो गए। 3 मार्च 2021 को भुवनेश्वर  के आठगड़ डिवीजन खुण्टुड़ी रेंज कृष्णपुर जंगल में हुए अग्निकांड के बाद अब अनुगुल जिले के कुइओ जंगल में 20 एकड़ जंगल जलकर खाक हो गया। ओडिशा के  कंधमाल, गंजाम, गजपति, मालकान गिरी एवं रायगड़ा जिले के जंगलों में अक्सर आग लगती रहती है। वैसे भी जंगलों में आग लगने की घटना के मामले में ओडिशा देश में पहले स्थान पर है। 22 फरवरी से 1 मार्च के बीच ओडिशा के विभिन्न जंगलों में 5291 अग्निकांड घटना हो चुकी है। एक सप्ताह में जंगल में आग लगने की घटना के मामले में ओडिशा के बाद दूसरे स्थान पर तेलंगाना है जहां पर एक सप्ताह में 1527 वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं। इस मामले में मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है जहां पर 1507 अग्निकांड सामने आयी है जबकि चौथे स्थान पर  आंध्र प्रदेश है जहां 1292 अग्निकांड की घटना सामने आयी है। ओडिशा में वर्ष 2017 से 2019 के बीच भी सर्वाधिक वनाग्नि की घटनाएं  हुई थीं। ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित सिमलीपाल नेशनल पार्क भी इन दिनों आग की लपटों में घिरा हुआ है। इस नेशनल पार्क में पिछले 10—15 दिन से भयंकर आग लगी हुई है, लेकिन इस आग पर किसी का ध्‍यान नहीं जा रहा है। सिमलीपाल जंग 1060 वर्गमीटर में फैला देश का सबसे अहम नेशनल पार्क है।

 

यह जगह मयूरभंज एलीफेंट रिजर्व का हिस्‍सा है। साथ ही एक टाइगर रिजर्व भी है। ऐसे में यहां आग का लगना चिंता की बात है। सिमलीपाल का जंगल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, गौर ओर चौसिंघा का घर है । इसके अलावा यह पार्क अपने खूबसूरत झरनों जैसे जोरांदा और बेरीपानी फाल्‍स के लिए भी जाना जाता है।  वर्ष 2009 में यूनेस्‍को की तरफ से इसे वर्ल्‍ड नेटवर्क ऑफ बायोस्‍पेयर रिजर्व घोषित किया गया था। 31 मार्च 2021 को  मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के खितोली, मगधी और ताला जोन में आग  लग गई थी जो अभी तक बुझाई नहीं जा सकी है।

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वर्ष 2012 में उत्तराखंड विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि इस साल छह जून तक वनाग्नि की 1,086 घटनाएं दर्ज की गई हैं जिनमें 2,542 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल कर खाक हो गया है। उत्तराखंड में वन क्षेत्र के 30 फीसदी हिस्से में आग बुझाने की कोई व्यवस्था नहीं है।

इन्हीं क्षेत्रों से आग शुरू होती है और बिना अंकुश के विकराल हो जाती है। वन विभाग के अनुसार पिछले दस साल में हर साल औसतन 3,000 हेक्टेयर वन जले हैं। वर्ष 2012 में रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के अधिकांश वन क्षेत्र में आग लग गई थी।  तब विभाग  ने दावा किया था कि एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस वन प्रभाग के 14 हजार  हेक्टेयर में अकेले चीड़ के जंगल हैं जो पूरे जल गए हैं।  लेकिन वहीं उसने इस बात का भी दावा किया था कि वहां सिर्फ 94 हेक्टेयर जंगल ही जला है।  उत्तराखंड के महज एक जिले पिथौरागढ़ में कोरोना काल में वर्ष 2020 में वनाग्नि की 26 घटनाएं हुईं  जिसमें  28 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई। यह और बात है कि वनाग्नि की रोकथाम के लिए विभिन्न वन क्षेत्रों में 1460 किलोमीटर फायर लाइन का निर्माण किया गया है। 77 क्रू स्टेशन बनाए गए हैं, जिन्हें एक्टिव कर दिया है। विभिन्न क्षेत्रों में पांच वॉच टावर भी बनाए गए हैं। इस तरह की व्यवस्था काश, हर जगह हो पाती।

जंगल में आग का लगना आर्थिक दृष्टि से भी और जैविक संतुलन व आर्थिकता के लिहाज से भी उचित नहीं है। आग लगने के कारण बहुधा मानव जन्य गलतियां होती हैं। इन पर अंकुश लगाए बिना जंगलों का भला नहीं होने जा रहा। जंगलों में आग लगने से वन्य जीव भी परेशान होते हैं और अंतत: वे मानव समाज के लिए ही घातक होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि जंगल की आग को बुझाने के यथासंभव प्रयास किए जाएं। जंगल ही न रहे तो मानव का वजूद भी खतरे में पड़ जाएगा।

 

 

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