नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भारत खिलौना मेला (Toy-fair-2021) का उद्घाटन किया। भारत खिलौना मेला 2021 का आयोजन प्रधानमंत्री के इस विजन के अनुरूप किया गया। यह मेला 27 फरवरी से दो मार्च, 2021 तक चलेगा।
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पीएम नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भारत खिलौना मेला 2021 (Toy-fair-2021) का उद्घाटन किया। इसका उद्देश्य सतत लिंकेज बनाने और उद्योग के समग्र विकास पर विचार-विमर्श करने के लिए एक ही प्लेटफॉर्म पर खरीददारों, विक्रेताओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों, डिजाइनरों आदि सहित सभी हितधारकों को लाना है।
प्रधानमंत्री ने उद्घाटन में कहा-
- पीएम ने कारीगरों से कहा कि आप सभी से बात करके ये पता चलता है कि हमारे देश के खिलौना उद्योग (Toy-fair-2021) में कितनी बड़ी ताकत छिपी हुई है>
- वीडियो-इस ताकत को बढ़ाना, इसकी पहचान बढ़ाना, आत्मनिर्भर भारत अभियान का बहुत बड़ा हिस्सा है.यह पहला toy fair केवल एक व्यापारिक या आर्थिक कार्यक्रम भर नहीं है।
- यह कार्यक्रम देश की सदियों पुरानी खेल और उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की एक कड़ी है।
- पीएमओ के बयान में कहा गया कि बच्चों के मस्तिष्क विकास में खिलौने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मनोवैज्ञानिक गतिविधि तथा ज्ञान की कुशलता बढ़ाने में बच्चों की मदद करते हैं।
- ज्ञात हो कि अगस्त 2020 में अपने मन की बात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि खिलौने न केवल क्रियाशीलता बढ़ाते हैं, बल्कि महत्वाकांक्षाओं को पंख भी लगाते हैं।
- बच्चे के समग्र विकास में खिलौनों के महत्व की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने पहले भी भारत में खिलौनों के उत्पादन को बढ़ाने पर बल दिया है।
- बेंगलुरु स्टार्टअप का बहुत बड़ा हब है। इस क्षेत्र में लोगों को भी कुछ नवाचार करना होगा.लोगों के सुझाव पर हम सक्रियतापूर्वक जुड़ेंगे।
- खिलौना बच्चों की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। खिलौना मेला का फायदा लोगों को उठाना चाहिए।
- सरकार हस्तशिल्प को बढ़ाना देने के लिए जरूर प्रयास करेगी। सभी खिलौना कारीगरों से बात करके पता चलता है कि टॉय इंडस्ट्री में कितनी ताकत छिपी है.सिंधुघाटी सभ्यता, मोहनजो-दारो और हड़प्पा के दौर के खिलौनों पर पूरी दुनिया ने रिसर्च की है।
- प्राचीन काल में दुनिया के यात्री जब भारत आते थे, तो भारत में खेलों को सीखते भी थे और अपने साथ लेकर भी जाते थे। आज जो शतरंज दुनिया में इतना लोकप्रिय है, वो पहले ‘चतुरंग या चादुरंगा’ के रूप में भारत में खेला जाता था।
- आधुनिक लूडो तब ‘पच्चीसी’ के रुप में खेला जाता था।
- हमारे धर्मग्रन्थों में बाल राम के लिए अलग-अलग कितने ही खिलौनों का वर्णन मिलता है।
- पुन: उपयोग और रिसाइक्लिंग जिस तरह भारतीय जीवनशैली का हिस्सा रहे हैं, वहीं हमारे खिलौनों में भी दिखता है।
- ज़्यादातर भारतीय खिलौने प्राकृतिक चीजों से बनते हैं, उनमें इस्तेमाल होने वाले रंग भी प्राकृतिक और सुरक्षित होते हैं।
- आज मैं देश के खिलौना निर्माताओं से भी अपील करना चाहूंगा कि आप ऐसे खिलौने बनाएं, जो इकोलॉजी और साइकोलॉजी दोनों के लिए ही बेहतर हों।
- क्या हम ये प्रयास कर सकते हैं कि खिलौनों में कम से कम प्लास्टिक इस्तेमाल करें?।
- भारतीय खेल और खिलौनों की ये खूबी रही है कि उनमें ज्ञान होता है, विज्ञान भी होता है, मनोरंजन होता है और मनोविज्ञान भी होता है। ऐसी चीजों का इस्तेमाल करें जिन्हें रि-साइकिल कर सकते हैं, जब बच्चे लट्टू से खेलना सीखते हैं तो खेल-खेल में ही उन्हें ग्रेविटी और बैलेंस का पाठ पढ़ाया जाता है।
- अगर आज Made in India की डिमांड है तो आज Hand Made in India की डिमांड भी उतनी ही बढ़ रही है।
- देश ने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में दर्जा दिया है।
- National Toy Action Plan भी तैयार किया गया है। इसमें 15 मंत्रालयों और विभागों को शामिल किया गया है ताकि ये उद्योग competitive बने, देश खिलौनों में आत्मनिर्भर बनें और भारत के खिलौने दुनिया में जाएं।
- देश में 85 प्रतिशत खिलौने विदेशों से मंगाए जाते हैं, पिछले सात दशकों में भारतीय कारीगरों और भारतीय विरासत की जो उपेक्षा हुई है, उसका परिणाम ये है कि भारत के बाज़ार से लेकर परिवार तक में विदेशी खिलौने भर गए हैं। सिर्फ खिलौना नहीं आया है, एक विचार प्रवाह हमारे घर में घुस गया है।
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- ई-कॉमर्स सक्षम डिजीटल प्रदर्शनी में 30 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक प्रदर्शकों ने अपने उत्पाद दिखाये. इसमें परंपरागत भारतीय खिलौनों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक टॉय, प्लस टॉय, पजल तथा गेम्स सहित आधुनिक खिलौने दिखाए गए।