नई दिल्ली। भारत की आजादी के लिए 23 मार्च 1931 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान स्वंतत्रता सेनानियों शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जब-जब आजादी की बात होगी तब-तब इंकलाब का नारा देने वाले भारत माता के ये वीर सपूत याद किए जाते रहेंगे। ब्रिटिश हुकूमत ने 23 मार्च 1931 को ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया था।
सजा की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन 1 दिन पहले ही फांसी दे गई
भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। बता दें कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके लिए तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी। तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई। इस मामले में सुखदेव को भी दोषी माना गया था। सजा की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन 1 दिन पहले ही फांसी दे गई थी।
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जानें क्या हुआ था फांसी के दिन?
जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।
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शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के शहीदी दिवस के अवसर पर देश भर में जगह-जगह कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। कई जगहों पर शहीदी दिवस को युवा सशक्तीकरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसके अलावा कई जगहों पर रक्तदान शिविर लगाया जाता है।