डॉ. मयंक चतुर्वेदी
देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से बेचैनी है। कोरोना संक्रमण के बीच देश में अचानक ‘रेमडेसिविर’ इंजेक्शन (Remdesivir Injection) को लेकर बेचैनी है। जिन्हें इस दवा की जरूरत नहीं, वे भी इसे पाने के लिए परेशान हैं। बढ़ती मांग से रेमडेसिविर (Remdesivir) की कालाबाजारी शुरू हो गई है। जबकि, हकीकत यह है कि आज दवा बाजार में ‘रेमडेसिविर मॉड्यूल’ के कई विकल्प मौजूद हैं।
कई चिकित्सकों का दावा है कि कोरोना संक्रमितों के परिजन यदि रेमडेसिविर (Remdesivir) नामक इंजेक्शन को छोड़कर इसके विकल्प पर जाएं और चिकित्सालय भी इस ओर ध्यान दे तो कोरोना संक्रमितों को आसानी से ‘रेमडेसिविर मॉड्यूल’ ड्रग उपलब्ध कराया जा सकता है। वास्तव में कोविड के इस महा संकट के समय में इस इंजेक्शन की देश में कोई कमी नहीं है।
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जिनमें ऑक्सीजन की कमी उन्हें दिया जाना चाहिए ‘रेमडेसिविर’
दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया की माने तो ”यह कोई जादुई दवा नहीं, जो मौत की दर कम कर दे। इस पर हुई स्टडी ने यह नहीं बताया कि इसके लेने से मौत का प्रतिशत कम हो गया है, लेकिन फिर भी यह दवा सिर्फ उन लोगों को दी जानी चाहिए जो अस्पताल में भर्ती हैं और जिनमें ऑक्सीजन की कमी है।” यहां डॉ. गुलेरिया की कही बात से इतना तो साफ हो गया है कि ‘रेमडेसिविर’ पर किए गए शोध यह निष्कर्ष जरूर देते हैं कि जिन मरीजों में ऑक्सीजन की कमी हो रही है या जिस मानव शरीर में वायरस का संक्रमण आवश्यकता से अधिक फैल रहा है, उसे जरूर समय रहते यह दवा दी जानी चाहिए।
अब सवाल है कि जब इस नाम से दवा मार्केट में इंजेक्शन उपलब्ध ही नहीं हो पा रहा है, जो मिले तो उसकी कीमत 20 से 30 गुना अधिक हो तो क्या किया जाए?
गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के मेडिसिन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुलदीप देवपुजारी और एवं कोविड केयर सेंटर ग्वालियर के इंचार्ज डॉ. अमित कुमार रघुवंशी की बातें समझने लायक हैं।
डॉ. देवपुजारी ने कहा कि रेमडेसिविर मॉड्यूल है, इस नाम से अनेक कंपनियां अपनी दवाएं बना रही हैं। हमें नाम के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि ये देखना चाहिए कि संबंधित ड्रग हमें मिल रहा है या नहीं। सरकार में तो यह अनुबंध के साथ आ रहा है। हम अपने स्तर पर व्यवस्था भी बना रहे हैं कि सभी शासकीय चिकित्सालयों में यह उनकी आवश्यकता को देखते हुए उपलब्ध करवा दें। लेकिन प्राइवेट में जरूर यह देखना चाहिए कि रेमडेसिविर के मिलने के अभाव में जो अन्य विकल्प मौजूद हैं, उनका कितना अधिक उपयोग किया जा सकता है।
विकल्प हैं दवा बाजार में मौजूद
अन्य महत्वपूर्ण विकल्पों के बारे में डॉ. अमित कुमार रघुवंशी बताते हैं निजी अस्पतालों में जो लोग ‘रेमडेसिविर’ नाम के पीछे भाग रहे हैं, वे जरूर अन्य इंजेक्शनों की खोजबीन बाजार में कर सकते हैं। डॉ. रघुवंशी का कहना यह भी था कि विकल्प के तौर पर मौजूद इंजेक्शनों में वही समान फार्मुला एवं दवा है जो कि ‘रेमडेसिविर’ नाम से बाजार में बिक रहे इंजेक्शन में है। इनमें से जो आसानी से उपलब्ध हो, वह जरूरतमंद मरीज को लगवाइए। परिणाम वही आएगा जो अपेक्षित है।
जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री बायो रेक्सिव का निष्कर्ष
इस दवा को लेकर जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री बायोरेक्सिव में एक शोध-पत्र विस्तार से दिया गया है, इसी प्रकार का रिसर्च नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन बायोटेक्नोलॉजी का भी है। अनुसंधान के निष्कर्ष बताते हैं कि ‘रेमेड्सवियर’ अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा अनुमोदित एकमात्र कोविड-19 का उपचार है।
हालांकि, इसकी प्रभावशीलता को लेकर अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपने ट्रायल के परिणामों द्वारा सवाल उठा रहा है। लेकिन जो शोध के निष्कर्ष हैं, वे यही बताते हैं कि रेमेडिसविर, जीएस-441524 के मूल न्यूक्लियोटाइड, वेरो-ई 6 और अन्य कोशिकाओं में गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोना वायरस 2 की प्रतिकृति को रोकता है। चूहे पर किए गए प्रयोग पूरी तरह से प्रभावित रहे। उसके बाद इंसानों पर इसका प्रयोग किया गया और कई मरीजों पर इसके प्रयोग से बीमारी में अप्रत्याशित सुधार देखा गया।
उल्लेखनीय है कि यह एक एंटीवायरल दवा है, जिसे अमेरिका की दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने सबसे पहले बनाई। इसे हेपेटाइटिस-सी और सांस संबंधी वायरस (आरएसवी) का इलाज करने के लिए दस साल पूर्व बनाया गया था। फिर गिलियड साइंसेज कंपनी ने रेमडेसिविर को इबोला के ड्रग के रूप में विकसित किया, लेकिन अब जब कोरोना संक्रमित पर इसका उपयोग किया गया तो यह एक जीवन रक्षक दवा के रूप में सामने आया।
यही कारण है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन को लोग महंगी कीमत पर भी खरीदने को तैयार हैं। फिलहाल भारत में इस दवा का प्रोडक्शन सिप्ला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉक्टर रेड्डीज, सन फार्मा जैसी कई कंपनियां कर रही हैं।