पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा की घटनाओं को लेकर जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया है। कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सात सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है। सीएम ममता जांच के खिलाफ थी, हाईकोर्ट ने सीएम द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता सरकार को फटकार लगाते हुए कहा- हिंसा से जुड़ी शिकायतों का निस्तारण करने के लिए राज्य सरकार ने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया।हाईकोर्ट ने याद दिलाते हुए कहा- राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखना राज्य सरकार का उसका कर्तव्य है।
पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद हिंसा की घटनाएं बड़ा सियासी मुद्दा बन चुकी है और भाजपा इस मुद्दे को लेकर ममता सरकार पर लगातार हमलावर है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी हिंसा की घटनाओं के मामले में राज्य सरकार पर निष्क्रिय और उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर ममता सरकार हिंसा के मामलों को लगातार नकारती रही है और मामले को नाहक तूल देने का आरोप लगाती रही है।
कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर अमल अमल करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने अब समिति का गठन कर दिया है। सात सदस्यीय समिति में अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद, महिला आयोग की सदस्य राजुल बेन एल देसाई और पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार पंजाब को भी शामिल किया गया है। मानवाधिकार आयोग के सदस्य राजीव जैन इस समिति की अध्यक्षता करेंगे।
इस कमेटी को हिंसा के मामलों की अब तक मिली शिकायतों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कमेटी आगे मिलने वाली शिकायतों की भी जांच पड़ताल करेगी। कमेटी से ऐसे अधिकारियों को चिन्हित करने के लिए भी कहा गया है जिन्होंने हिंसा की शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की और चुप्पी साधे रखी।