हरिद्वार । भगवान भोलेनाथ के ससुराल धर्मनगरी में उनका डमरू-त्रिशूल श्रद्धालुओं की आस्था और आकर्षण का केंद्र बनेगा। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा 141 फुट ऊंचा डमरू-त्रिशूल स्थापित करने जा रहा है। 80 लाख रुपये की लागत से डमरू-त्रिशूल तैयार होकर हरिद्वार पहुंच गया है। पांच अप्रैल को ललतारौ पुल के निकट दुख हरण हनुमान मंदिर मायापुरी में विधि-विधान से इसे स्थापित किया जाएगा। शहर में सबसे ऊंचा होने के कारण अधिकतर इलाकों से श्रद्धालु इसे देख पाएंगे।
शैव संन्यासी भगवान शंकर और उनके अवतारों को आराध्य देव मानते हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय के सात अखाड़े हैं। जूना अखाड़ा इनमें सबसे बड़ा है। जूना अखाड़ा हरिद्वार में पहला 141 फुट ऊंचा डमरू-त्रिशूल स्थापित कर रहा है। त्रिशूल का अगला हिस्सा ही 31 फुट ऊंचा है।
डमरू-त्रिशूल को बजाज कंपनी ने डिजायन कर बनाया है। इसे हाई क्वालिटी स्टील से तैयार किया गया है। जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरि के मुताबिक डमरू-त्रिशूल 80 लाख रुपये की लागत से बना है। कंपनी का दावा है कि 250 साल तक स्टील खराब नहीं होगा।
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यह अत्यधिक तेज हवा का दबाव सहन करने में भी सक्षम होगा। कंपनी ही इसका रखरखाव करेगी। श्रीमहंत हरिगिरि के मुताबिक डमरू-त्रिशूल का बेस बहुत मजबूत बनाया जाएगा। बुनियाद का आकार 15 गुणा 15 फुट वर्ग होगा। जबकि नींव 20 फुट गहरी होगी।
महंत हरिगिरि ने बताया कि त्रिशूल पर फोकस लाइटें लगाई जाएंगी। जिससे श्रद्धालु रात में भी दूर से इसे देख पाएंगे। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा हरिद्वार से पहले बाकी तीनों कुंभ शहरों में डमरू-त्रिशूल स्थापित कर चुका है।
नासिक में नीलगिरी पर्वत पर 151 फुट ऊंचा, उज्जैन में शिप्रा किनारे 127 फुट ऊंचा और प्रयागराज में जमुना किनारे 170 फुट ऊंचा डमरू-त्रिशूल लगाया गया है। पांच अप्रैल को हरिद्वार के ललतारौ पुल के पास दुख हरण हनुमान मंदिर मायापुरी में 141 फुट ऊंचा डमरू-त्रिशूल स्थापित हो जाएगा।
श्रीमहंत हरिगिरी, अंतरराष्ट्रीय संरक्षण जूना अखाड़ा ने बताया कि मुंबई से डमरू-त्रिशूल बनकर आ गए हैं। पांच अप्रैल को विधि विधान से स्थापित हो जाएगा। 80 लाख की लागत से तैयार डमरू-त्रिशूल श्रद्धालुओं की आस्था और शहर में सबसे ऊंचा डमरू-त्रिशूल पहचान बनेगा।