लखनऊ। रंगमंच सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि प्रतिभा है। यह चेहरा नहीं किरदार देखता है। महिलाओं को इसे आत्मसात करके मंच तक पहुंचने में समय जरूर लगा। एक समय था जब नाटक व फिल्मों में महिलाओं के किरदार पुरुष निभाते थे। महिलाओं के लिए रंगमंच में कोई स्थान नहीं था, लेकिन समय के साथ उन्होंने समाज के बाकी क्षेत्रों के साथ रंगमंच में भी अपने आप को साबित किया है। महिलाएं आज रंगमंच को सिर्फ मनोरंजन न मानकर एक करियर के तौर पर चुन रही हैं।
विश्व एड्स दिवस 2019: एचआईवी की चपेट में है दुनिया की 3.5 करोड़ आबादी
थिएटर से फिल्मों तक का सफर करने वाली सिमरन निशा ने बताया कि रंगमंच ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है। थिएटर की एक कार्यशाला से अपनी शुरुआत करने वाली सिमरन ने अपना पहला नाटक हसीना मान जाएगी लखनऊ फेस्टिवल में किया। उनकी अदाकारी को देखकर सभी बड़े रंगकर्मियों ने उनकी सराहना की। इसके बाद उन्होंने सैंया भहे कोतवाल, इयोडीपस, तुगलक, सिकंदर, नारी जैसे नाटकों में काम किया। रंगमंच के साथ टीवी और फिल्मों में अपनी अदाकारी के जलवे बिखेरे। नवाजुद्दीन के साथ फिल्म बाबू मोशाय बंदूकबाज व अजय देवगन की फिल्म रेड में वह बड़ी स्क्रीन पर नजर आईं। फिल्म मुल्क, छोटे नवाब में काम किया। टीवी पर धारावाहिक घूमती नदी के अलावा कई शॉर्ट फिल्म और विज्ञापन किए। वह बताती हैं कि रास्ता तो मिल गया, लेकिन मंजिल अभी दूर है।
बीएनए निदेशक आरसी गुप्ता का कहना है कि महिलाएं अब रंगमंच पर अपना परचम लहरा रही हैं। भारतेंदु नाट्य अकादमी में कुछ साल पहले चार-छह लड़किया कोर्स के लिए चयनित होती थी, अब संस्थान में 40 विद्यार्थियों में 17 लड़कियां है।