ओडिशा: जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में पूरे साल जगन्नाथ की पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है। यह वैष्णव मंदिर श्री हरि के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ (Jagannath Rath Yatra) का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) 01 जुलाई से शुरु हो रही है और यह रथ यात्रा 9 दिन की होती है। 01 जुलाई दिन शुक्रवार को अपने विशाल रथ नंदीघोष पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे, वे अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग रथों पर सवार होकर अपनी ‘मौसी के घर’ गुंडिचा मंदिर जाएंगे।
वहां पर वे 7 दिनों तक विश्राम करने के बाद अपने धाम पुरी वापस लौटते हैं। हर वर्ष प्रभु जगन्नाथ नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं, पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं भगवान जगन्नाथ के ‘नंदीघोष’ रथ और बलराम तथा बहन सुभद्रा के रथों की विशेषताएं।
जगन्नाथ रथ यात्रा में रथों की विशेषताएं
1. भगवान जगन्नाथ जी जिस रथ पर सवार होते हैं उसका नाम ‘नंदीघोष’ है, उस पर त्रिलोक्यमोहिनी ध्वज लहराता है।
2. रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं, जिसमें दूसरा बड़ा रथ नंदीघोष होता है, जो 42.65 फीट ऊंचा होता है।
3. नंदीघोष रथ में 16 पहिए होते हैं, यह लाल और पीले रंग का होता है। इस रंग से रथ को दूर से ही पहचान सकते हैं कि इसमें भगवान जगन्नाथ जी सवार हैं।
4. ‘नंदीघोष’ के सारथी दारुक हैं, जो भगवान जगन्नाथ को नगर भ्रमण कराते हैं। हालांकि इन रथों को मोटे रस्सों की मदद से खींचा जाता है।