नई दिल्ली । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को कहा कि कोरोना जैसी महामारी ने जहां पूरी दुनिया में जिन्दगियां और अर्थव्यवस्था तबाह कर रखी है। ऐसे में महात्मा बुद्ध का संदेश प्रकाशपुंज की तरह है, जिन्होंने जीवन में खुशियां हासिल करने के लिए लोगों को लालच, नफरत, हिंसा, ईर्ष्या और अन्य व्यसनों से दूर रहने की सलाह दी थी।
मानव जीवन के कष्टों के समाधान के संबंध में दिये गये भगवान बुद्ध के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने ढाई हजार साल पहले थे
श्री कोविंद ने कहा कि मानव जीवन के कष्टों के समाधान के संबंध में दिये गये भगवान बुद्ध के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने ढाई हजार साल पहले थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के धम्म चक्र दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों में जिन मूल्यों के बारे में बताया, उनके अनुसार चलना कितना जरूरी है।
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भारत को गर्व है कि वह ‘धम्म की जन्मभूमि’ है
राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान बुद्ध के उपदेश उस वक्त के मुताबिक धारा के विपरीत थे, लेकिन उनके उपदेशों में प्रेम, सौहार्द और अहिंसा समाहित थे। इन्हीं शाश्वत मूल्यों के आधार पर पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ।
उन्होंने कहा कि भारत को गर्व है कि वह ‘धम्म की जन्मभूमि’ है। भारत से ही इसकी शुरुआत हुई और यह आसपास के देशों में फैला। वहां नयी उर्वर जमीन पर यह प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ और बाद में इसकी शाखायें बनीं।
श्री कोविंद ने कहा कि 2,500 वर्ष पहले आज ही के दिन आषाढ़ पूर्णिमा को पहली बार ज्ञान के वचन बोले गये। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने पांच सप्ताह किस अवस्था में बिताये, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। उसके बाद उन्होंने प्राप्त ज्ञान को दूसरों के साथ बांटना शुरू किया।
वाराणसी के पास सारनाथ के एक उद्यान में उन्होंने अपने पांच शिष्यों को ‘धम्म’ की शिक्षा दी। यह क्षण पूरी मानवजाति के लिए अविस्मरणीय था। उन्होंने कहा कि आधुनिक दौर में दो महान भारतीयों- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बाबासाहब भीमराव अंबेडकर- ने भगवान बुद्ध के उपदेशों से प्रेरणा ली और देश का भाग्य बदल दिया। उनके पदचिह्नों पर चलकर हमें भगवान बुद्ध के उपदेशों पर अमल करते हुए उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम एक ऐसी जानलेवा महामारी के दौर से गुजर रहे हैं, जिसने सम्पूर्ण मानवता को भयभीत कर दिया है। इसने (कोरोना ने) हर व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और संभवत: दुनिया का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं है। हमें अनुशासन में रहना होगा और सोशल डिस्टेंसिग का पालन करना होगा। इस महामारी के समय में भगवान बुद्ध के उपदेश एक प्रकाशपुंज की तरह हैं। उन्होंने मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए लोगों को लालच, नफरत, हिंसा, ईर्ष्या और अन्य दुर्गुणों को खत्म करने की भी शिक्षा दी।
उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के इन उपदेशों के विपरीत मानवजाति हिंसा और प्रकृति के दोहन में सतत लगी है। हम सब जानते हैं कि कोरोनावायरस के संक्रमण की गति जैसे ही थमेगी, हमें उससे अधिक गंभीर जलवायु परिवर्तन की समस्या का सामना करना होगा।
श्री कोविंद ने कहा कि भारत में आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू और जैन इस दिवस को अपने आध्यात्मिक गुरुओं की याद में मनाते हैं। यह दिवस बिना किसी हठ के ज्ञान की तलाश में अनवरत लगे रहे भारत की न टूटने वाली कड़ी है।
उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के पहले उपदेश के बाद से ही धम्म चक्र एक धुव्रतारे की तरह आध्यात्मिक खोज में लगे लोगों को इस सांसारिक दुनिया में रास्ता दिखा रहा है। यह पारंपरिक धर्म से अधिक मानसिक थेरेपी जैसा लगता है। भारत में बौद्ध धर्म को सनातन सत्य की नयी अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। भगवान बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति और उसके बाद चार दशक से अधिक समय तक दिये गये उनके उपदेश, बौद्धिक स्वतंत्रता और आध्यात्मिक विविधता को सम्मान करने की भारतीय परंपरा को दर्शाते हैं।
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया ने इस साल बहुत अधिक दुख झेले हैं और मैं तहेदिल से यह कामना करता हूं कि यह पवित्र दिवस आशा की नयी किरण लेकर आये और खुशियों की झलक दिखाये। मैं यह भी प्रार्थना करता हूं कि यह सबके दिल में ज्ञान का दीप जलाये। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पर अपने विचार व्यक्त किये।