आगरा। जिले के केंद्रीय कारागार से आखिरकार ललितपुर के विष्णु तिवारी (Vishnu Tiwari) बुधवार को रिहा हो गए। दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट के मामले में पैरवी नहीं कर पाने की वजह से उनकी जिंदगी के 20 साल सलाखों के पीछे गुजर गई। मगर, अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें बेगुनाह साबित कर दिया है। दूसरी तरफ कोर्ट के फैसले के बाद पुलिसिया सिस्टम की लापरवाही की पोल फिर से खुल गई है।
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जानें क्या है पूरा मामला:-
ये मामला सितंबर 2000 का है। ललितपुर के थाना महरौली के गांव सिलावन निवासी विष्णु तिवारी पर एक अनुसूचित जाति की महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगाया था। इस मामले में विष्णु तिवारी जेल गए। उन्हें कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में 10 साल की सजा सुनाई। साथ ही एससी-एसटी एक्ट में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। विष्णु (Vishnu Tiwari)सन 2000 से ही जेल में थे। विष्णु तीन साल ललितपुर की जेल में रहे। सन 2003 से विष्णु आगरा केंद्रीय कारागार में 17 साल से बंद रहे।
20 वर्ष में खोए मां-बाप और दो भाई
बता दें कि, विष्णु (Vishnu Tiwari) पांच भाइयों में चौथे नंबर के हैं। वह 20 साल से जेल में थे। सन 2013 में विष्णु के पिता रामसेवक की मौत हो गई। एक साल बाद ही उनकी मां भी चल बसीं। कुछ साल बाद उनके बड़े भाई राम किशोर और दिनेश का भी निधन हो गया। दुख इतना ही नहीं रहा, वो अपने मां-बाप व भाई के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाए थे।
हाईकोर्ट ने दिया रिहा करने का आदेश
विष्णु तिवारी (Vishnu Tiwari) की आर्थिक हालत सही नहीं थी। आर्थिक रूप से कमजोर विष्णु के पास पैरवी के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए वह वकील भी नहीं कर सके थे। निचली अदालत से सजा होने पर उन्होंने उच्च कोर्ट में अपील तक नहीं की।
आगरा केंद्रीय कारागार के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि, जेल प्रशासन ने विष्णु (Vishnu Tiwari)की ओर से अपील की व्यवस्था की। विधिक सेवा समिति के अधिवक्ता ने विष्णु के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की. जिसकी सुनवाई पर विष्णु की रिहाई का आदेश दिया गया। वह बेगुनाह साबित हुए हैं। बुधवार तीसरे पहर हाईकोर्ट का परवाना आने पर उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्हें 600 रुपए देकर भेजा गया है। विष्णु केंद्रीय कारागार से सीधे आगरा कैंट रवाना हुए, जहां से ट्रेन से झांसी के लिए रवाना होंगे।