इंपीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण और वायु प्रदूषण के आपसी संबंधों का पता लगाया। वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्रदूषित हवा के बीच रहने वाला व्यक्ति संक्रमित होता तो उसे अस्पताल में भर्ती होने का खतरा ज्यादा है। ऐसे लोगों को संक्रमण के बाद गंभीर तकलीफ की भी संभावना अधिक रहती है। जब लोग प्रदूषित हवा अंदर लेते हैं तो फेफड़ों में मौजूद जिस प्रोटीन को वायरस जकड़ता है, उसकी संख्या बढ़ जाती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदूषित हवा के बीच रहने वाला व्यक्ति संक्रमित होता तो उसे अस्पताल में भर्ती होने का खतरा ज्यादा है। ऐसे लोगों को संक्रमण के बाद गंभीर तकलीफ की भी संभावना अधिक रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार जानवरों में परीक्षण के दौरान पाया गया है कि वे जब प्रदूषित हवा लेते हैं तो फेफड़ों में मौजूद जिस प्रोटीन को वायरस जकड़ता है, उसकी संख्या बढ़ जाती है। इसी के जरिये वायरस शरीर में तेजी से संख्या बढ़ाता है। इसी कारण संक्रमित मरीजों को फेफड़ों और हृदय संबंधी गंभीर तकलीफ होती है।
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लंदन के मेयर सादिक खान ने इस खुलासे के बाद कहा है कि महामारी के साथ वायु प्रदूषण से भी निपटने की रणनीति बनानी होगी। प्रदूषित हवा से केवल कैंसर जैसी बीमारी ही नहीं बल्कि श्वांस संबंधी रोग के साथ, अस्थमा और निमोनिया जैसी बीमारियां भी जन्म ले सकती हैं, जो महामारी के बीच घातक हैं। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के प्रो. पॉल प्लांट का कहना है कि दूषित हवा फेफड़ा और हृदय रोग से ग्रसित मरीजों के लिए खतरनाक है। अब कोरोना से फेफड़ों को खतरा दोगुना हो गया है। ऐसे में बचाव का एक ही तरीका है कि हवा की गुणवत्ता को सुधारा जाए और मास्क पहना जाए।