तिरुवनंतपुरम। सबरीमाला (Sabarimala Temple) में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे को लेकर एलडीएफ सरकार को घेरा जा रहा है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर निषेध की परंपरा का समर्थन करने के साथ ही माकपा पर आक्रमक हमले भी कर रही हैं। एक ओर इस मुद्दे को लेकर भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प में जनता से कानून बनाने का वादा किया है तो वहीं, कांग्रेस ने महिलाओं के प्रवेश पर निषेध को लेकर प्रस्तावित कानून का मसौदा जारी किया है।
सबरीमाला (Sabarimala Temple) पर इस दोहरी राजनीति से एलडीएफ की अगुवा माकपा बैकफुट पर आ गई है। ऐसे में अभी तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल कराने की बात कहने वाले मुख्यमंत्री पिनराई विजयन फिलहाल इस मुद्दे से बचते नजर आ रहे हैं।
विजयन ने यह कहते हुए मामले को दबाने की कोशिश की कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पुनर्विचार याचिका पर फैसला देने के बाद सभी राजनीतिक दलों और लोगों से राय मशविरा कर सहमति से सबरीमाला पर आगे कदम उठाएंगे। परंतु कांग्रेस इसे विजयन का धोखा बता रही है। कांग्रेस का कहना है कि माकपा के नेता केवल चुनाव तक ऐसी गोल-मोल बात कर रहे हैं, मगर असलियत में विजयन और माकपा महासचिव सीताराम येचुरी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हैं।
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कांग्रेस के पूर्व सीएम ओमान चांडी और नेता विपक्ष रमेश चेन्नीथला से लेकर पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेता सबरीमाला की आस्था पर चोट को हर जगह बार-बार उठा रहे हैं और माकपा के लिए इसका ठोस जवाब देना मुश्किल हो रहा है।
इधर, केरल में अपनी जगह तलाश रही भाजपा भी सबरीमाला (Sabarimala Temple) मुद्दे को लेकर माकपा की घेराबंदी में कसर नहीं छोड़ रही। भाजपा के वरिष्ठ नेता गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कोच्चि के अपने चुनावी रोड शो के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला (Sabarimala Temple) में माकपा सरकार ने जिस तरह का अहंकार दिखाया, उसका केरल के चुनाव पर असर पड़ेगा।
बता दें कि माकपा सरकार के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कार्यान्वयन की हुई कोशिश के दौरान 2018 में सबरीमाला और उसके आसपास हिंसा हुई थी। चुनाव में इस मुद्दे के उठने की आशंका को देखते हुए केरल के देवस्वम मंत्री (मंदिर मामले के मंत्री) इस पर खेद जता चुके हैं पर कांग्रेस और भाजपा दोनों माकपा के खिलाफ अपनी सियासी बयानबाजी की बौछार कम करने की जगह बढ़ाते जा रहे हैं।
माकपा की चुनावी चिंता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में माकपा को सूबे की 20 में से 19 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था और सबरीमाला की आस्था पर एलडीएफ सरकार के रुख को इसकी सबसे बड़ी वजह माना जाता है।