कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन संकट बड़ी समस्या थी, ऑक्सीजन के लिए लोग भटक रहे थे, अभाव में कई लोगों की जान भी गई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक ऑक्सीजन ऑडिट टीम बनाई गई थी, जिसकी शुरुआती रिपोर्ट अब सामने आई है, रिपोर्ट दिल्ली सरकार पर सवाल खड़े करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जब दिल्ली सरकार द्वारा 1200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की गई थी तब सिर्फ 300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी। दिल्ली की इस मांग के कारण करीब 12 राज्यों में ऑक्सीजन की किल्लत पैदा हुई क्योंकी दूसरे राज्यों के कोटे में कटौती करनी पड़ी थी। रिपोर्ट के बाद बयानबाजी तेज हो गई है, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा- शोर मचाना कोई दिल्ली सरकार से सीखे।
हालांकि, दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह ने 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया था और ऑक्सीजन वितरण प्रणाली पर पैनल से ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी।ऑडिट के दौरान ऑक्सीजन टास्क फोर्स ने पाया कि 13 मई को दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन टैंकरों को नहीं उतारा जा सका, क्योंकि उनके टैंक पहले से ही 75% से अधिक क्षमता पर थे। यहां तक कि एलएनजेपी और एम्स जैसे सरकारी अस्पतालों में भी ऑक्सीजन टैंक भरे पड़े थे।
गौरतलब है कि अप्रैल-मई के दौरान जब कोरोना पीक पर था, तब दिल्ली के कई अस्पतालों को ऑक्सीजन संकट से जूझना पड़ा था और नौबत यहां तक आ गई कि कई लोगों की जानें भी चली गईं। दावा किया गया कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से कोरोना मरीजों की जानें गईं। इसके बाद केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच ऑक्सीजन को लेकर तकरार देखने को मिली थी।