योगी सरकार ने 25 जुलाई से यूपी में कांवड़ यात्रा शुरू करने का ऐलान किया है। इस मामले में योगी सरकार और केंद्र सरकार के बीच सहमति नहीं बन पा रही है।सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को इस फैसले पर दोबारा विचार विमर्श करने की सलाह दी है। इस मामले में विपक्षी दलों ने योगी सरकार के फैसले का विरोध किया है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए कावड़ यात्रा के फैसले को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा- यात्रा में भीड़ की बाढ़ आएगी फिर बाढ़ में भक्तों के शव बहेंगे।
शिवसेना का कहना है कि उत्तराखंडऔर उत्तर प्रदेश दोनों ही भाजपा शासित राज्य हैं। लेकिन दोनों राज्यों की सरकारों की मत अलग है। कांवड़ यात्रा में सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु आते जिसे उत्तराखंड सरकार ने यात्रा पर रोक लगाने का फैसला लिया है।
संपादकीय में कहा है कf उत्तराखंड सरकार ने कोरोना काल में कांवड़ यात्रा पर रोक लगाने का ऐलान किया है। दोनों ही भाजपा शासित राज्य हैं और दोनों में दो अलग-अलग मत नजर आ रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार हस्तक्षेप किया, यह महत्वपूर्ण है।
संपादकीय में कहा गया है कि महाराष्ट्र के भाजपाई नेता क्या इससे कुछ सीखेंगे? वे पंढरपुर की वारी (यात्रा) को अनुमति दो, ऐसा राग आलाप रहे हैं और वारकरी संप्रदाय के कुछ प्रमुख लोगों को उकसाकर ‘वारी’ के लिए आंदोलन करा रहे हैं। ये लोगों की जान से खेलने की ही अघोरी प्रवृत्ति है। महाराष्ट्र सरकार ने श्रद्धा व भावना से प्रभावित होकर माऊली की ‘वारी’ की अनुमति दी होती तो सुप्रीम कोर्ट ने उस निर्णय पर आपत्ति जताई ही होती, यह उत्तर प्रदेश की घटना से साफ नजर आता है।
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सामना ने संपादकीय में कहा है की प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना की तीसरी लहर के संदर्भ में लोगों को सतर्क रहने की चेतावनी दी है। सर्वाोच्च न्यायालय को भी यह बार-बार कहना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं फिर भी महाराष्ट्र के भाजपाई नेता होश में नहीं आ रहे हैं, इस पर हैरानी होती है। पंढरपुर की ‘वारी’ जिस प्रकार श्रद्धा का विषय है, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा का महत्व है। अब उसी श्रद्धा का मान रखते हुए भाजपाई लोग ‘कांवड़ यात्रा की अनुमति दो, अन्यथा आंदोलन करेंगे,’ ऐसी धमकी देंगे क्या? यह धमकी या तो सुप्रीम कोर्ट को होगी अन्यथा सीधे प्रधानमंत्री को ही होगी।