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‘खुले में शौचालय अभियान’ चलने वाली कलावती नारी शक्ति पुरस्कार से हुई सम्मानित

कलावती

कलावती

नई दिल्ली। आज से 32 साल पहले देश में विकास की सीढ़ी शायद उतनी ही पीछे थी जितनी की काफी साल पहले थी। लेकिन इतनी अविकसित देश होने के बाद भी अगर कोई स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखते हुए लोगों को खुले में शौच न करने की सीख दे, तो शायद वह कोई महान ही हो सकता है। तो बता दें कि उस स्वच्छता वीरांगना का नाम कलावती है, जो आज राजमिस्त्री का काम करती हैं। अपने काम के कारण ही वो स्वच्छता वीरांगना के नाम से जानी जाती हैं।

कलावती को आत्म निर्भर बनने की प्रेरणा उनके पति जयराज सिंह से मिली। पति भी राजमिस्त्री थे। उनके निधन के बाद कलावती ने अपना पूरा जीवन खुले में शौचालय अभियान को दे दिया। रविवार को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें दिल्ली में नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया तो फिर से उनके संघर्ष की कहानी लोगों के सामने आ गई। आज से करीब 42 साल पहले कलावती सीतापुर से अपने पति के साथ कानपुर आई थीं।

जेके मंदिर के पीछे राजापुरवा में रहते हुए वह भी अपने पति के साथ भवन निर्माण में मजदूरी करने लगी। इसी दौरान उन्होंने पति का हाथ बंटाने के लिए राजमिस्त्री के रूप में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद वह श्रमिकों के कल्याण के लिए गठित संस्था श्रमिक भारती से जुड़ गईं। इसके बाद कलावती ने पीछे नहीं देखा। वह अपने साथ और भी महिलाओं को जोड़कर पूरा कुनबा तैयार कर लिया।

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कलावती यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से भी पहले से ही श्रमिक भारती के जरिए चला रही थीं। मोदी की मुहिम ने उन्हें और ताकत दी। जिसका परिणाम आज सभी के सामने है। सबसे पहले उन्होने करीब तीन लाख की लागत से एक सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया था। अब तक वह 40 हजार से अधिक शौचालयों का निर्माण कर चुकी है।

कलावती ने जेके मंदिर के समीप स्थित राजापुरवा बस्ती से शौचालय निर्माण अभियान की शुरुआत किया। इसके साथ ही राखी मंडी, जूही, समेत कई जगह सामुदायिक और एकल शौचालय बनवाकर लोगों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई। शहरी बस्तियों के बाद उन्होंने गांवों में भी इस मुहिम को चलाया।

पति की मौत के बाद वह वर्ष 2015 से अपनी बेटी और दामाद के साथ शिवराजपुर स्थित कुंवरपुर गांव में रह रही हैं। श्रमिक भारती के अमिताभ ने बताया कि कलावती में अपने काम के प्रति लगन थी, जिसकी वजह से वह इस मुकाम पर पहुंची।

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