ओडिशा: जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में पूरे साल जगन्नाथ की पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है। यह वैष्णव मंदिर श्री हरि के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और इसका समापन 12 जुलाई को होगा। रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से तीन दिव्य रथों पर निकाली जाती हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर जाते हैं। भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई, तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे और तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं।
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गौरतलब है कि रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं।