हिंदू धर्म में एक विवाहित स्त्री के लिए सोलह श्रृंगार का बड़ा महत्व है, जिसमें स्त्री सिर से लेकर पैर तक विभिन्न प्रकार के आभूषण धारण करती है. स्त्री के सोलह श्रृंगार में बिंदी, काजल, मेहंदी, चूड़ी, मंगलसूत्र, मांग टीका, झुमके, बाजूबंद, कमरबंद, बिछिया (Bichhiya), पायल, अंगूठी आदि आभूषण शामिल होते हैं. माथे पर बिंदी से लेकर पैर में पायल तक, जो भी आभूषण महिलाएं धारण करती हैं, उसका अपना एक विशेष महत्व होता है. शास्त्रों में सभी आभूषणों का विश्लेषण किया गया है. आज हम पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानेंगे स्त्री के पैरों की अंगुलियों में बिछिया (Bichhiya) पहनने का महत्व.
बिछिया (Bichhiya)पहनने का ज्योतिष महत्व
शास्त्रों में उल्लेख है कि आभूषण किसी भी स्त्री के विवाहित होने के संकेत होते हैं. यह भारतीय संस्कृति का भी प्रतीक है. बिछिया पैर के अंगूठे के बाद वाली उंगली में पहनी जाती है. यह औरतों के पैरों को आकर्षक बनाती है. महिलाओं के लिए बिछिया पहनना शुभ माना जाता है क्योंकि इसका संबंध देवी मां से हैं. दुर्गा पूजा के दौरान भी मां को बिछिया पहनाई जाती है.
बिछिया (Bichhiya) पहनने का वैज्ञानिक कारण
महिलाओं के बिछिया पहनने का ना सिर्फ धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक कारण भी है. कहते हैं कि औरतों के पैर की अंगुली की नसों का संबंध उनके गर्भाशय से होता है. ऐसे में बिछिया पहनने से रक्त का प्रवाह सही तरह से गर्भाशय तक पहुंचता है और उन्हें गर्भधारण करने में परेशानी कम होती है. बिछिया एक एक्यूप्रेशर का काम भी करती है, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधि लाभ भी मिलता है.
सोने की बिछिया (Bichhiya) पहनने की मनाही
धार्मिक दृष्टि से पैरों में चांदी की बिछिया ही पहननी चाहिए क्योंकि पैरों में सोना नहीं पहनते. कमर से नीचे सोने के आभूषण पहनना मां लक्ष्मी का अपमान माना जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाता है कि चांदी धरती से निकले वाली ध्रुवीय ऊर्जा को खींच कर महिलाओं के शरीर तक पहुंचाती है, जिससे महिलाएं दिनभर ऊर्जावान बनी रहती हैं.