न्यूज डेस्क। अगर किसी में कुछ कर गुजरने का हौसला हो तो वह आसमान में भी सुराख करके ऊपर की ओर निकल सकता हैं। ऐसा ही कुछ राजस्थान की एक लड़की ने कर दिखाया। उस लड़की ऐसा हिम्मत दिखाया की आज वो कलेक्टर यानी आईएएस अधिकारी बन गयी।
2012 बैच की महाराष्ट्र कैडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी निधि चौधरी की कहानी बहुत दिलचस्प है। तो आइए जानते हैं उनके शक्ति और संकल्प की प्रेरक कहानी।
भारतीय रिजर्व बैंक की मैनेजर से आईएएस अधिकारी तक का सफर कैसा रहा?
निधि चौधरी: यह सफर बड़ा ही रोचक रहा। मेरी छोटी बहन पहले ही आईपीएस परीक्षा पास कर चुकी थी। मैं भी बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत थी, मेरी छोटी बहन ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया किया और आईएएस अधिकारी बनने के लिए दिन-रात प्रेरित किया।
आप आईएएस ही क्यों बनना चाहती थीं?
निधि चौधरी: मेरा लक्ष्य शुरू से ही समाज की सेवा करना था। मैं हर हाल में समाज के लिए काम करना चाहती थी। बैंक मैनेजर के पद पर भी मैंने ज्यादा से ज्यादा इस दिशा में काम किया। लेकिन आईएएस बनकर इस दिशा में ज्यादा बेहतर काम कर पा रही हूं।
एक बच्चे की मां बनने के बाद इस कठिन परीक्षा की तैयारी करके सफल होना, कितना मुश्किल रहा यह सफर?
निधि चौधरी: हां, मुश्किल हुई मगर मेरे परिवार ने मेरी हर कदम मदद की। मुझे आगे बढ़ने के लिए हौसला दिया। मेरे पति ने बच्चे को संभाला और लक्ष्य तक पहुंचने में हर कदम मेरा साथ दिया।
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क्या आप मानेंगी कि हर सफल औरत के पीछे पुरुष होता है?
निधि चौधरी: बिलकुल हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत होती है और साथ ही हर सफल औरत के पीछे एक पुरुष होता है। मेरा जीवन इसकी मिसाल है।
कौन सी बात आपको हौसला देती हैं?
निधि चौधरी: बस कुछ करना है, कभी डरना नहीं हैं, कुछ करके दिखाना है, यह सब बातें कभी हौसला टूटने नहीं देती हैं। मेरे माता पिता ने हम बहनों को पढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया है और मैं उनके इस संघर्ष का नतीजा हूं।
बचपन की कोई बात जो अक्सर याद आती हो?
निधि चौधरी: मैं राजस्थान के बहुत छोटे से गांव से तालुक रखती हूं। मैं एक ऐसे क्षेत्र से आती हूं जहां बेटियों का जन्म और पूरा जीवन कठिनाइयों से भरा होता है। जब हमारे माता-पिता हमें स्कूल भेजते थे तो लोग कहते थे “कितना पढ़ाओगे लड़कियों को, कलेक्टर बनाना है क्या।” आज देखिए, मैं कलेक्टर और मेरी बहन एसएसपी बन गई।
कोई ऐसा खास सपना जो आप पूरा करना चाहती हो?
निधि चौधरी: हां, एक बहुत ही जरूरी सपना जिसको मरने से पहले पूरा होते देखना चाहती हूं। 15 अगस्त और 26 जनवरी को कोई भी बच्चा देश के ट्रैफिक सिग्नल्स पर तिरंगा ना बेचता नजर आए। ये सब देखकर देश की आजादी बहुत अधूरी लगती है।
अपनी “शक्ति” के जरिये आप महिलाओं को कोई संदेश देना चाहती हैं?
निधि: मैं यह कहना चाहती हूं कि हमारे समाज में बेटियों को यह बताया जाए कि वो किसी से कम नहीं हैं। उनकी तुलना लड़कों से नहीं की जानी चाहिए। देश का माहौल ऐसा बन गया है जिसमें लड़कियों को लगता है कि वो सुरक्षित नहीं हैं।
हमारे संस्कार ऐसे बन गए हैं जिसमें स्त्री को हमेशा सुरक्षा में रखने की बात होती है। यह सब बदलना चाहिए। यह बदलाव केवल औरतें ही ला सकती हैं। हम नौ महीने अपने पेट में बच्चे को पालती हैं तो यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि बच्चों को यह संदेश और ज्ञान दें कि बेटा-बेटी बराबर है।
बल्कि बेटियों में बेटों से आगे जाकर कुछ कर गुजरने की क्षमता भी है। अपने अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। बेटियों को वो शक्ति देनी होगी जो अब तक हम उनको नहीं दे रहे हैं। जब यह हो जाएगा तो इस देश में दिन हो या रात, महिलाएं हर वक्त सुरक्षित होंगी।