देहरादून। उत्तराखंड जितना खूबसूरत है, उतनी ही समृद्ध यहां की संस्कृति है। यहां के लोकपर्व, रहन-सहन, खानपान कई मायनों में प्रकृति से जुड़े हुए हैं। उनमें से एक है हरेला (Harela) पर्व। मंगलवार को प्रदेश भर में हरेला पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस बार हरेला पर्व पौधरोपण महोत्सव में तब्दील हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील ‘एक पेड़ मां के नाम’ से लोगों में रुचि और बढ़ गई। हरेला (Harela) पर्व जहां रिश्तों में प्रगाढ़ता और मधुरता लाएगी, वहीं पौधरोपण से प्रकृति से जुड़ाव भी बढ़ेगा।
हरेला (Harela) पर्व पर विश्व पर्यावरण दिवस की तरह लोगों और युवाओं का हुजूम पौधरोपण करने उमड़ा। सोशल मीडिया पर पौधरोपण संबंधी फोटो शेयर करने की होड़ मची रही। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर लोग एक-दूसरे को वन एवं पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझाते हुए पौधरोपण की अपील करते नजर आए। वन विभाग, उद्यान विभाग आदि सरकारी विभागों समेत विभिन्न स्थानों पर बड़े पैमाने पर लोगों ने पौधरोपण किया। हरेला पर्व पर वन विभाग और उद्यान विभाग ने छायादार व फलदार पौधे बांटे और रोपण भी किया।
हरेला न केवल हरियाली बल्कि पर्यावरण जागरुकता का संदेश देता है : मुख्यमंत्री
पहाड़ी राज्य में हरेला (Harela) से सावन की शुरुआत हो गई। हरेला पर्व खास तौर से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। हरेला पर्व से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सावन का महीना शुरू होता है। यह लोकपर्व पर्यावरण संरक्षण को भी प्रोत्साहन देता है। इस पर्व में प्रकृति पूजन किया जाता है और पौधे भी रोपे जाते हैं।
हरेला (Harela) को लेकर धार्मिक मान्यता है कि अनाज की नरम मुलायम पंखुड़ियां परिवारजनों के बीच रिश्तों में प्रगाढ़ता और मधुरता बनाए रखता है। हरेला को लेकर यह भी मान्यता है कि बोया गया हरेला जितना अधिक बढ़ेगा फसल में भी वैसी ही वृद्धि होगी। हरेला पूजन के बाद लोग अपने घरों और आस-पास खाली पड़ी जगहों पर पौधारोपण भी किया।