देहरदून। उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश देवभूमि की लोक संस्कृति में रचा बसा है। इसे भगवान आशुतोष का प्रिय पुष्प भी माना जाता है। बुरांश की महत्ता को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं।
कहा जाता है कि फाल्गुन में भगवान शिव (Lord Shiva Play Holi With Buransh) और सभी देवी-देवता बुरांश के फूलों से होली खेलते हैं। उत्तराखंड के लोकगीत, साहित्य और देवी भजनों में भी बुरांश का विशेष उल्लेख मिलता है। यही नहीं अब यह पुष्प गांवों में कई परिवारों की आर्थिकी का जरिया भी बन रहा है।
मध्य हिमालय क्षेत्र में 1500 मीटर से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले बुरांश की 65 से अधिक प्रजातियां मध्य हिमालय में बताई जाती हैं। रुद्रप्रयाग जिले में मद्महेश्वर, तुंगनाथ, चोपता, देवरियाताल, मोहनखाल, घिमतोली और जखोली में लाल, गुलाबी, सफेद, पीला और नीले रंग का बुरांश सबसे अधिक खिलता है।
यह पुष्प सिर्फ बसंत के आगमन का ही नहीं, बल्कि प्रेम, उल्लास और यौवन का सूचक भी है। लोक गायकों, लेखकों और कवियों ने लोक गीतों, आलेखों और कविताओं में बुरांश की महिमा का बखान किया है।