लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ के पास तो इतराने की एक और भी वजह है, लेकिन नबाबों के शहर में पली-बढ़ी और पढ़ी बेटी इसरो की सीनियर साइंटिस्ट रितु करिधाल श्रीवास्तव चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर हैं।
मैं हमेशा सोचती कि अंतरिक्ष के अंधेरे के उस पार क्या है?
अब उनकी पहचान एक रॉकेट विमेन के रूप में है। अब हम आपको रूबरू करा रहे हैं रितु करिधाल श्रीवास्तव की कहानी से रूबरू करा रहे हैं। लखनऊ में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं रितु कहती हैं कि मम्मी-पापा का पूरा फोकस पढ़ाई पर रहा। मम्मी मेरे साथ रात-रात भर जागतीं, ताकि मुझे डर न लगे। रितु कहती हैं कि तारों ने मुझे हमेशा अपनी ओर खींचा। मैं हमेशा सोचती कि अंतरिक्ष के अंधेरे के उस पार क्या है? विज्ञान मेरे लिए सिर्फ एक विषय नहीं, बल्कि जुनून था।
1997 में मुझे इसरो से चिट्ठी मिली कि बंगलूरू में हमारी एजेंसी जॉइन करें
रितु बताती हैं कि 1997 में मुझे इसरो से चिट्ठी मिली कि बंगलूरू में हमारी एजेंसी जॉइन करें। 2000 किमी दूर भेजने में माता-पता को डर लग रहा था। हालांकि उन्होंने मुझ पर भरोसा किया। मुझे भेजा और यहीं से मेरा अंतरिक्ष की दुनिया का सफर शुरू हुआ। उनके लिए ‘मॉम’ शब्द बेहद अहम है। मॉम यानी दो प्यारे और जिम्मेदार बच्चों की मां और ‘मार्स आर्बिटरी मिशन’ के सफलता की गवाह और डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर। पति अविनाश, बेटा आदित्य और बेटी अनीषा मेरे हर प्रोजेक्ट की अहमियत को समझते हैं और यही वजह है कि मुझे उनकी चिंता नहीं करनी पड़ती।
कैसे रहा रितु का लखनऊ विश्वविद्यालय से इसरो तक का सफर?
लखनऊ विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया। गेट पास करने के बाद मास्टर्स डिग्री के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज को ज्वाइन किया। यहां से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री ली। 1997 से इसरो से जुड़ी हैं। मंगलयान में डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रहीं। अब चंद्रयान 2 में मिशन डायरेक्टर हैं।
रितु लखनऊ में राजाजीपुरम की रहने वाली हैं। वैज्ञानिक होने के बावजूद रितु बरगदाही की पूजा हो या तीज का व्रत, दीदी पूरे रीति-रिवाज से करती हैं। फेमिली लाइफ में जितना परंपराओं को वह मानती हैं, उतना ही प्रोफेशनल लाइफ में अपने काम से प्यार करती हैं।
आप भी अपनी बेटियों पर भरोसा करें
इसरो की वरिष्ठ वैज्ञानिक रितु करिधाल श्रीवास्तव बताती हैं कि इसरो में हमने कई अहम प्रोजेक्ट किए है। लेकिन मंगलयान की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में मिशन मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रहा। पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा था। हमारे पास कोई अनुभव नहीं था, टीम ने मिलकर नायाब काम कर दिखाया। उनका मानना है कि यूं तो बेटियां अपने बूते आगे बढ़ रही हैं, लेकिन अभी उन्हें और सपोर्ट की जरूरत है। रितु कहती हैं कि जैसे मेरे माता-पिता ने मुझ पर भरोसा किया, आप भी बेटियों पर भरोसा कीजिए।