नई दिल्ली। अफगानिस्तान में शांति कायम करने के लिए अमेरिका, तालिबान और अफगान सरकार के बीच हाल ही में जो शांति वार्ता हुई है। उसके पीछे एक एक महत्वपूर्ण चेहरा फौजिया कूफी हैं। बता दें कि फौजिया कूफी का डॉक्टर बनने का उनका बचपन का सपना था, लेकिन तालिबान के अफगानी सत्ता पर कब्जे के साथ उनका सपना हमेशा के लिए टूट गया।
बता दें कि भले फौजिया कूफी का सपना भले ही टूटा, लेकिन उनका हौसला नहीं। तालिबान के लिए खिलाफ आज वह अफगानिस्तान की मजबूत आवाज हैं। पिछले दिनों जब तालिबान के साथ शांति वार्ता हो रही थी तो मर्दों से भरे हॉल में वह और मानवाधिकार के लिए काम करने वालीं लैला जाफरी और वह मात्र दो महिलाएं थीं।
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वहां उन्होंने मजबूती से अपनी बात अफगानिस्तान सबके लिए रखी है। वह किसी एक विचारधारा के लिए नहीं। जब वह बोल रही थीं, तालिबानी डेलिगेशन के लोग उन्हें घूर रहे थे। ये वही तालिबानी थे जिन्होंने सत्ता में आने पर कूफी के पति को जेल में बंद कर दिया था और उन्हें भी मारने की कोशिश की थी। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि मैं उनके सामने झुकी नहीं। मेरे लिए डटे रहना जरूरी था। मैं वहां अफगानी महिलाओं की प्रतिनिधि थी।’
बता दें कि अफगानिस्तान के एक परंपरागत सियासी परिवार में कूफी का जन्म हुआ था। उनके पिता सांसद थे। पहले अफगानिस्तान युद्ध के आखिर में मुजाहिदीन ने उनको कत्ल कर दिया था। कूफी बहुविवाह वाले परिवार के 23 बच्चों में अकेली बच्ची थीं।
कूफी मानती हैं कि जंग से जूझते रहे अफगानिस्तान में सुरक्षा जितनी ही बड़ी चिंता कट्टरपंथ को लेकर है क्योंकि समाज अब भी महिलाओं की आजादी पर अंकुश लगाता है और महिलाओं को उनकी हद बताता रहता है। अफगानिस्तान का समाज बंटा हुआ है। समाज में अब भी ज्यादा रुढ़िवादी लोगों का दबदबा है।
बेशक एक ऐसी महिला जिसकी लाइफ तालिबानियों के कारण पूरी तरह से उलट-पलट गई, महिलाओं के अधिकार के लिए बेहद मजबूती से उसके सामने खड़ी हैं। अफगान शांति प्रक्रिया का जिक्र होने पर वह जोर देकर कहती हैं कि शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की ज्यादा हिस्सेदारी होनी चाहिए।