नई दिल्ली। भारत में हर सातवां व्यक्ति मेंटल डिसऑर्डर जैसे डिप्रेशन, एंजाइटी डिसऑर्डर, पागलपन और बायपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। डिप्रेशन और एंजाइटी डिसऑर्डर सबसे आम मानसिक विकारों थे। 1990 से 2017 तक 197,3 मिलियन भारतीय मानसिक विकारों से पीड़ित हुए। जिसमें से 45.7 मिलियन डिप्रेशन और 44.9 मिलियन एंजाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित थे।
10 फीसदी अपनी मानसिक बीमारी को न स्वीकार करते हैं और न ही करवाते हैं उसका इलाज
यह रिसर्च अखिल भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) दिल्ली में हुआ है। एम्स दिल्ली के प्रोफेसर मनोरोग और रिसर्च के प्रमुख लेखक डॉ. राजेश सागर ने बताया कि हम देश की आबादी के 14.5 फीसदी की बात कर रहे हैं जिनमें से 10 फीसदी अपनी मानसिक बीमारी को न स्वीकार करते हैं और न ही उसका इलाज करवाते हैं। बता दें कि इस तरह का रिसर्च देशवासियों पर पहली बार किया जा गया है।
कुछ मानसिक विकारों की संख्या 1990 से 2017 तक आते-आते दोगुनी हो गई
वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य नीतियों में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य को तेजी से पहचाना जा रहा है। इसे सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) में भी शामिल किया गया है। रिसर्च में देखा गया कि हालांकि कुछ मानसिक विकारों की संख्या 1990 से 2017 तक आते-आते दोगुनी हो गई है। 2017 तक आते-आते भारत में उम्र के साथ डिप्रेशन लोगों में अधिक बढ़ गया है। बुजुर्गों को सबसे अधिक डिप्रेशन होता है। इसके साथ ही पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा अधिक देखने को मिला है।
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अधिकांश आत्महत्या के प्रयास 15 से 29 साल के बीच होते हैं
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की प्रोफेसर राखी डंडोना ने कहा कि भारत में उम्र के साथ होने वाले डिप्रेशन और आत्महत्या से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्याओं के बीच एक कड़ी है। महिलाओं में डिप्रेशन के लिए बहुत सारे कारक मनो-सामाजिक कारक अहम भूमिका निभाते हैं। अधिकांश आत्महत्या के प्रयास 15 से 29 साल के बीच होते हैं, जब महिलाएं वैवाहिक जीवन में स्थिर होने का प्रयास करती हैं।